दुनिया | Poem on Duniya
दुनिया
( Duniya )
है कितनी आभासी दुनिया,
कुछ ताजी कुछ बासी दुनिया।
किसी की खातिर बहुत बड़ी है,
मेरे लिए जरा सी दुनिया।
युगों-युगों से परिवर्तित है,
फिर भी है अविनाशी दुनिया।
चमक दमक के पीछे भागे,
हैं दौलत की प्यासी दुनिया।
सबको शिकायत है दुनिया से,
फिर भी काबा-काशी दुनिया।
कहीं रौनकें, खुशहाली है,
कहीं दर्द की दासी दुनिया।
हमने इसकी शक्ल बिगाड़ी,
थी जो अच्छी खासी दुनिया।
संस्कार को भूलके अब तो,
भोगी बनी विलासी दुनिया।