अनुत्तरित प्रश्न
अनुत्तरित प्रश्न

अनुत्तरित प्रश्न

( Anuttarit Prashna )

 

रास्ते से गुजरते हुए
एक प्राकृतिक आॅक्सीजन टैंकर ने
देख मुझे रोका
हाल मुझसे मेरा पूछा।
दोस्त क्या हाल है?
कुछ देख रहे हो?
समझ रहे हो
इन दो टके के
कृत्रिम आक्सीजन सिलिंडरों की कीमत
जरा सा कोरोना प्रेशर क्या पड़ा
अपनी औकात दिखा रहे हैं?
बनाने वाले इसके
लोगों को लूट रहे हैं।
दुगने तिगने दामों पर सब खरीद रहे है ,
मिल जा रहा यही बहुत है!
यह कह बेच रहे हैं;
बाप का माल समझ रहे हैं।
धंधा चमका लिया है,
अरे मानवों तूने !
आपदा को भी अवसर बना लिया है?
आदम जात?
तुम लोगों की औकात ही इतनी है,
आदत भी वैसी ही है।
मर रहे हैं तुम्हारे अपने ही
फिर भी निर्लज्ज हो लूट रहे हो,
लाशों पर अपनी महलें पीट रहे हो?
हमें देखो
खड़े खड़े सदियों से
नि:शुल्क आॅक्सीजन
और न जाने क्या क्या?
दिए जा रहे हैं।
पीढ़ियों से
कभी कुछ नहीं मांगा तुमसे
न मांगा मेरे परिवार ने।
मनमानी करते हो फिर भी
चुपचाप सहते आए हैं
लेकिन तुम्हारी देख हरकत
सकते में हम तो आए हैं!
नि:शुल्क सर्वस्व दे अब पछता रहे हैं।
सोचो अगर हम भी वसुलने लगे?
कालाबाजारी करने लगे?
अपनी शर्तों पर दें आॅक्सीजन
सोचो कैसा होगा तेरा जीवन!
क्या होगा तेरा ?
जवाब मुझे न कुछ सूझा
बिन बोले
सिर झुकाए
मुंह लटकाए
सोचते बुदबुदाते
राह अपनी चल दिए।

?

नवाब मंजूर

लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

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