पर्यावरण | Paryaavaran par kavita
पर्यावरण
( Paryaavaran )
( Paryaavaran )
प्रित का प्रेम ( Prit ka Prem ) मैं तुम्हें लफ्जों में समेट नही सकती क्योंकि– तुम एक स्वरूप ले चुके हो उस कर्तार का– जिसे मैं हमेशा से ग्रहण करना चाहती हूं किन्तु– समझा नही पाती तुम्हें कि– अपने विजन को छोड़कर यथार्थ जीने का द्वंद्व वाकई में किंतना भयप्रद है। नकार देती…
जीवन रूपी यात्रा ( Jeevan Rupi Yatra ) श्री हरि ने भेजा संसार में जीवन रूपी यात्रा करने पूर्ण l मां के आंचल की छांव में जीवन रूपी यात्रा का हुआ आगाज l पाल ~ पोश बड़ा किया स्नेह दिया भरपूर l पढ़ा~लिखा शादी कर बसाया गृहस्थ संसार l यहां तक की यात्रा में…
कलयुगी दोहे ( Kalyugi dohe ) झूठ बराबर तप नही,सांच बराबर पाप। जाके हृदय झूठ है,ताके हृदय है आप।। रिश्वत लेना धर्म है,सच बोलना है पाप। दोनो को अपनाइए,मिट जाएंगे संताप।। माखन ऐसा लगाईये, बॉस खुश हो जाए। बिना काम के ही,प्रमोशन जल्दी हो जाए।। गंगा नहाए से पाप धुले,मै सागर…
“नारी हो तुम “ ( Nari ho tum ) जगत मैं आई हो तो, संसार का कुछ उद्धार करो! अपने अस्तित्व की एक नई , फिर से तुम शुरुआत करो जो जग में जाने जाते हैं , वही वीर कहलाते हैं तुम नारी हो शक्ति स्वरूपा नारायणी जैसा तुम काम करो ! हो समाज…
मेरे अवगुण हर लो ना प्रभु ( Mere avgun har lo na prabhu ) दर आया लेकर अरदास, मेरी झोली भर देना प्रभु। मैं मूरख नादान हूं ईश्वर, मेरे अवगुण हर लेना प्रभु। सृष्टि का संचार तुमसे ही, तुम ही पालनहारे प्रभु। भर देते भंडार सबके, सारे जग के रखवारे प्रभु। मन मंदिर में…
तुम्हें कब मना किया है किसी से प्रेम करने को तुम्हें कब मना किया है लेकिन! प्यार करना तुम ….. किसी से प्यार करना कहाँ गलत है….? बस….! इतना ध्यान रहे कि प्यार में अंधे हो कर अपनों को नहीं भूलें…… उन्हें भी उतना ही प्यार दें……… जितना अपनी प्रेमिका को प्यार देते हो……..!!…