पर्यावरण || Kavita
पर्यावरण
( Paryaavaran )
( Paryaavaran )
चक्षुजल ( Chakshujal ) बुभुक्षित कम्पित अधर का सार है यह। चक्षुजल है प्रलय है अंगार है यह।। तुंग सिंधु तरंग अमृत छीर है यह, प्रस्तरों को को पिघला दे वो नीर है यह, लक्ष्य विशिख कमान तूणीर है यह, मीरा तुलसी सूर संत कबीर है यह, प्रकृति है यह पुरुष है संसार है…
स्वतंत्रता नभ धरातल रसातल में ढूंढ़ता। कहां हो मेरी प्रिये स्वतंत्रता।। सृष्टि से पहले भी सृष्टि रही होगी, तभी तो ये बात सारी कहीं होगी, क्रम के आगे नया क्रम फिर आता है, दास्तां की डोर बांध जाता है।। सालती अन्तस अनिर्वचनीयता।। …
मानवीय संवेदना ख़त्म हो गई! हे ईश्वर ! आज तेरे मनुष्यों में,दयाभाव एवं मनुष्यता न रही।एक दूसरे के प्रति इन मनुष्यों में,बस! घृणा व शत्रुता समा रही है।मानवीय संवेदना ख़त्म हो गई!हैवानियत, हिंसा खूब बढ़ रही है।पति पत्नी की हत्या कर रहा है।आजकल मनुष्य पशु समान है।चंद पैसे हेतु हत्याएँ भी होती हैं।आज मनुष्य का,…
जन्म लेती है ग़ज़ल तो शायरी की कोख से ( Janm leti hai ghazal to shayari ki kokh se ) जन्म लेती है ग़ज़ल तो शाइरी की कोख से जिंदगी मिलती है जैसे जिंदगी की कोख से देखिए वरना अमीरी कब पड़फती है भूखी भूख की आहें उठती है मुफ़लिसी की कोख…
माँ की उलाहने बिटिया जब छोटी थीमॉं के लिए रोती धी,पल भर न बिसारती थीमाँ – माँ रटती रह जाती थी। थोड़ी सी जब आहट पायेचहुओर नजरे दौड़ाये,नयन मिले जब माँ सेदोंनो हृदय पुलकित हो जाये। अब तो बिटिया हुई सयानीआधुनिकता की चढ़ी रवानी,नये तेवर में रहती है अति बुद्धिमानी अपने को,माँ को बुद्धॣ कहती…
सूने घर राह देखते अपनों की ( Soone ghar rah dekhte apno ki ) सूनी पड़ी हवेलियां अब जर्जर सी हुई वीरान राह देखती अपनों की सब गलियां सुनसान वो भी क्या लोग सब दरियादिली में जीते थे ठाठ बाट शान निराली घूंट जहर का पीते थे दो पैसे ना सही मन…