मोहब्बत का जैसे असर लग रहा
मोहब्बत का जैसे असर लग रहा

मोहब्बत का जैसे असर लग रहा

( Mohabbat ka jaise asar lag raha )

 

खूबसूरत सुहाना सफर लग रहा।
मोहब्बत का जैसे असर लग रहा।।

 

राह -ए -हयात जिस पर मैं थक जा रही थी।
उस पर चलती रहूं उम्र भर लग रहा।।

 

ख्वाबों में अब तक जो मेरे आता रहा।
रूबरू आज मेरे नज़र लग रहा ।।

 

जिस पर चलकर मुझे मेरा मकसद मिले।
मेरी मंजिल का वो डगर लग रहा।।

 

मेरे एहसास मेरे तसव्वुर में वो।
मेरी सूनी ग़ज़ल का बहर लग रहा।।

 

पढ़ने को जिसको ढूंढे मुकम्मल जहां।
मेरे इश्क का वो खबर लग रहा।।

 

यादों में जिसके मेरी हैं रातें कटी।
उस हंसी शाम का वो सहर लग रहा।।

 

जिसके सोहबत में वक्त का पता ना चला।
मेरे महबूब सा वो पहर लग रहा।।

 

सूफियाने इश्क को जब से महसूस किया।
श्रुति का वो तभी से रहबर लग रहा।।

 

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 कवयित्री :- श्रीमती देवी ‘श्रुति’
सा.रा.सी.रा. बालिका इण्टर कालेज अयोध्या ,
( उत्तर प्रदेश )

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