महक तेरी मुहब्बत की

महक तेरी मुहब्बत की | Ghazal

महक तेरी मुहब्बत की

( Mehak teri muhabbat ki )

 

इत्र क्या,  गुलाब क्या ,  खुशबु कैसी,
कहां महक है इस जहान मे , तेरी जैसी

 

खुदा की खोज मे शीश झुकाया दर दर,
कहां है पूजा कोई, तेरे आचमन जैसी

 

होंगे कई तेरे चाहने वाले, समझ है मुझको,
ना  कही  होगी,  तपन, मेरे प्यार की जैसी

 

सुबह की ओस मे, तुम संवरने जो लगे,
चुभन  दिखाई  हमें,  टूटते  स्वप्न जैसी

 

राज  कुछ है ही नही, और कोई राज नही
यूं ही हो गयी ये गजल , जान समन्दर जैसी

?

कवि : राजेश कुमार

गुरुग्राम

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