Search Results for: व्यंग्य

दलबदल

दलबदल | व्यंग्य रचना

दलबदल ( Dalbadal ) शर्म कहां की, कैसी शराफत, सिध्दांत सभी, अपने बदल ! मिलेगी सत्ता, समय के साथ चल! दे तलाक़, इस पक्ष को, उसमें चल ! हो रही है, सत्ता के गलियारे, उथल-पुथल! तू भी अपना, मन बना, वर्ना पछताएगा कल! सब करते हैं, तू भी कर! चिंता कैसी, किसका डर? पंजा नहीं,ना…

भड़ास

भड़ास | व्यंग्य रचना

भड़ास ( Bhadaas ) कंगाल देश को, खंगाल रहा हूं! माल और मलाई, खा गए मुर्गे! हाथ मेरे, कुछ न आया,, तो क्या करूं? खोटा सिक्का, उछाल रहा हूं! कंगाल देश को, खंगाल रहा हूं! लूटकर भरी तिजोरी, छोड़कर सदन और कुर्सी! सियासत के मोहरे, दफा हो गये! मैं अकेला ही सबकुछ, संभाल रहा हूं!…

गांधी बनना है आसान

बापू का हिन्दुस्तान | व्यंग्य रचना

बापू का हिन्दुस्तान   गंदगी से व्याप्त एक गांव में एक मंत्री का था दौरा! उनका पी.ए वहां पहुंचा दौड़ा -दौड़ा! गांव के प्रशासन को कुंभकर्णी नींद से जगाया! और उन्हें —–और उन्हें मंत्रीजी के इसी आशय का एक पत्र पढ़कर सुनाया! मंत्रीजी के पत्र ने गांव के सुस्त प्रशासन को चुस्त बनाया! प्रशासन ने…

अधिकारी 

अधिकारी | व्यंग्य रचना

अधिकारी  ( Adhikari )    अधिकारी देश की ला-इलाज बीमारी! काम नहीं कौड़ी का पगार चाहिए ढेर सारी! मिली-भगत से इनके ही भ्रष्टाचार है जारी! हर तरफ यही नज़ारा है कोई भी हो विभाग सरकारी! छोड़ दे, छोड़ दे धन की लालच छोड़ दे! छोड़ दे, छोड़ दे खोटे धंधे छोड़ दे! वर्ना,जेल जाने की…

इस भीड़ की सच्चाई ( व्यंग्य )

Vyang | इस भीड़ की सच्चाई ( व्यंग्य )

इस भीड़ की सच्चाई ( व्यंग्य ) ( Is bheed ki sachai : Vyang )   ये कोरोना फैला नहीं रहे हैं भगा रहे हैं, देश को गंभीर बीमारी से बचा रहे हैं। देखते नहीं सब कितना जयघोष कर रहे हैं? समझो कोरोना को ही बेहोश कर रहे हैं? अजी आप लोग समझते देर से…

नेहरू जी बताएंगे

Vyang | नेहरू जी बताएंगे ! ( व्यंग्य )

नेहरू जी बताएंगे ! ( व्यंग्य ) ( Nehru Ji Batayenge )   वादे के मुताबिक ही हम काम कर रहे हैं, क्यों बेकार में फरियाद कर रहे हैं। सबको मिलेगी जगह शमशान में, क्यों इतना हैरान हो रहे हैं। आपने जो चाहा था,उसी पर काम कर रहे हैं, अयोध्या में बन रहा है, वाराणसी…

जंगल में चुनाव
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व्यंग्यात्मक लघुकथा | जंगल में चुनाव

जंगल में चुनाव ( व्यंग्यात्मक लघुकथा ) ( Jangal Mein Chunav ) शहर की भीड़-भाड़ से दूर किसी जंगल में एक शेर रहता था । जिसका नाम शेरख़ान था । अब वह बहुत बुढ़ा हो चुका था इसलिए उसे अपने खाने-पीने  व शिकार करने में बहुत परिश्रम करना पड़ता था। परन्तु शेरख़ान के जवानी के दिनों…

वो रोज दुनिया की

वो रोज दुनिया की चौखट पे बिकता है !

वो रोज दुनिया की चौखट पे बिकता है ! न हिन्दू दिखता है न मुस्लिम दिखता हैवो जो रोटी के लिये लड़ता हुआ आदमी हैवो रोज दुनिया की चौखट पे बिकता है ! अपने काम से अपने राम सेनिशदिन पड़ता है जिसका वास्ताअपनी रोजी से अपने रोज़े सेअलहदा नहीं है जिसका रास्ताउसकी आदत कोउसकी चाहत…

कलाम अहमद खान

कलाम अहमद खान : ‘शून्य से सूरज की ओर‘ ले जाने वाली शख्सीयत

हिन्दी एवं मराठी साहित्य के आकाश पर सूर्य की भांति प्रकाशमान एक नाम कलाम अहमद खान। आपने हिन्दी और मराठी साहित्य को जोड़ने के लिये सेतु का कार्य किया है, आपकी मराठी पर जितनीr पकड़ है उतनी ही हिन्दी साहित्य पर। वक्त के समंदर में युग भी डूब जाएगानाम कलाम अहमद का फिर भी जगमगाएगा…

डिजिटल युग में फर्जी खबरें

डिजिटल युग में फर्जी खबरें

यह पवित्रता ही है जो समाचार को समाज में एक विशिष्ट स्थान प्रदान करती है। लेकिन फर्जी खबरों की परिघटना समाचार के मूल मूल्यों को निशाना बनाती है, जो असामाजिक तत्वों, अफवाह फैलाने वालों या उन उच्च और शक्तिशाली लोगों के निजी हितों को पोषित करती है, जो समाचार की आड़ में अपना निजी एजेंडा…