दलबदल | व्यंग्य रचना
दलबदल ( Dalbadal ) शर्म कहां की, कैसी शराफत, सिध्दांत सभी, अपने बदल ! मिलेगी सत्ता, समय के साथ चल! दे तलाक़, इस पक्ष को, उसमें चल ! हो रही है, सत्ता के गलियारे, उथल-पुथल! तू भी अपना, मन बना, वर्ना पछताएगा कल! सब करते हैं, तू भी कर! चिंता कैसी, किसका डर? पंजा नहीं,ना…