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डॉक्टर सुमन धर्मवीर जी की कविताएँ | Dr. Suman Dharamvir Poetry

डॉक्टर सुमन धर्मवीर जी की कविताएँ | Dr. Suman Dharamvir Poetry

नया दौर (नवगीत) नया दौर आयेगा सभ्य दौर कहलायेगा, नहीं किसी से रोका जायेगा। समता, स्वतंत्रता , शिष्टता सिखायेगा, जाहिलता और फूहड़ता भगायेगा। नारी को शोषिता होने से बचायेगा। नारी को “मान सम्मान” दिलायेगा। हां हां नया दौर आयेगा सभ्य दौर कहलायेगा, नहीं किसी से रोका जायेगा। 2 मानवता,बंधुता , प्रेम भाव, भाईचारा सिखायेगा, मारधाड़…

शोषित समाज के प्रति चिंता प्रधान ग़ज़ल-संग्रह:-  “ज़िन्दगी अनुबंध है”

शोषित समाज के प्रति चिंता प्रधान ग़ज़ल-संग्रह:- “ज़िन्दगी अनुबंध है”

आज मैं बहुत खुश हूं कि लीक से हटकर लिखी गईं आर. पी. सोनकर जी की ग़ज़लें पढ़ रही हूं । हम देखते हैं कि पारंपरिक ग़ज़लों में प्रेम , मोहब्बत,और विरह की शायरी होती है । क्योंकि शे’रो – शायरी ज्यादातर समृद्ध वर्ग के लोग ही लिखते आए हैं और उन्होंने सामाजिक न्याय, समता…

Kavita Hey Ravi

हे रावी | Kavita Hey Ravi

हे रावी! ( Hey Ravi ) मुझे जिसकी तक़दीर पे आज भी अभिमान है वो भूखा-नंगा ही सही, मेरा हिन्दुस्तान है इस बांस-बन में छांव का आना है सख्त मना, चांद को भी जैसे यहाँ फांसी का फरमान है अब शहर मांस के दरिया में तब्दील हुआ, इसीके जख़्मो का मवाद अपने दरमियान है कल…

बंजारा के दस कविताएं

बंजारा की दो नयी कविताएँ

बंजारा की दो नयी कविताएँ ( 1 )  देवता कभी पत्थरों में खोजे गये और तराशे गयें देवता कभी मिट्टी में सोचे गये और ढ़ाले गयें देवता कभी प्लास्टिक में देखे गये और सांचे गयें. देवता लगातार सूखे पत्तों और कोरे कागजों पर चित्रित किये जाते रहें. मगर…अफ़सोस ! देवताओं को कभी हमने दिल में…

हनुमान जन्मोत्सव

हनुमान जन्मोत्सव | Kavita Hanuman Janmotsav

हनुमान जन्मोत्सव ( Hanuman Janmotsav ) तुम ज्ञान- गुण – सागर हो श्रीराम की रक्षा के लिये जीवन का सर्वस्व मिटाकर तुमने युध्द में अपने कौशल्य से लंका – दहन किया . तुम्हारी जागृत मूर्ति को मैं प्रणाम करता हूं कि तुम्हारा नाम लेते ही शत्रु -नाश दुर्भाग्य -दूर और प्रेत-मुक्ति हो जाती है ….

बंजारा के दस कविताएं

बंजारा की नौ नवेली कविताएँ

गली (एक) ————- एक जुलाहे ने बुनी थी दूसरी यह — ईट-गारे और घर-आंगन से बनी है . यह भी मैली है नुक्कड़ तक फैली है फटी है और सड़कों से कटी है . इसमें भी रंगों-से रिश्ते हैं और धागों-से अभागे लोग — जो जार जार रोते हैं ओढ़कर तार तार इसी चादर में…

बंजारा के दस कविताएं

बंजारा के दस कविताएं

1 प्रवाह ——- सोचता हूं कि दुनिया की सारी बारूद मिट्टी बन जाये और मैं मिट्टी के गमलों में बीज रोप दूं विष उगलती मशीनगनों को प्रेम की विरासत सौप दूं . पर जमीन का कोई टुकड़ा अब सुरक्षित नहीं लगता . कि मैं सूनी सरहद पे निहत्था खड़ा अपने चश्मे से, धूल -जमी मिट्टी…

Kavita Laawaris Deh

लावारिस देह | Kavita Laawaris Deh

उसकी बिंदिया ( Uski Bindiya )   उसकी बिंदिया दरवाजे पर झांकती अबोध किरण थी जो तुलसी को सांझ –ढ़ले हर्षा सकती थी कि वह दीपशिखा की तरह झिलमिला रही है . उसकी चूड़ियां दरवाजे पर उठती मासूम आहट थी जो रसोई में से भी साफ सुनी जा सकती थी कि वह चबूतरे पर खिलखिला…

Yuddh ke Dauran Kavita

युद्ध के दौरान कविता | Yuddh ke Dauran Kavita

युद्ध के दौरान कविता ( Yuddh ke Dauran Kavita )   रात के प्रवाह में बहते हुए अक्सर अचेत-सा होता हूं छूना चाहता हूं — दूर तैरती विश्व-शांती की वही पुरानी नाव-देह . अंधेरे और उजाले का छोर पाटती तमाम निर्पेक्षताओं के बावजूद यह रात भी / एक राजनैतिक षड़यंत्र लगती है मुझे . जहां…

महेन्द्र कुमार

महेन्द्र कुमार की कविताएं | Mahendra Kumar Hindi Poetry

संसर्ग के अभिलाष में, नेह का स्खलन सृष्टि चक्र शाश्वत नियम,विपरितता सहज आकर्षण ।जन्य आंगिक उत्तेजना,गमन पथ मृदुल घर्षण ।क्षणिक सुख पराकाष्ठा,चरम बिंदु दैहिक मिलन ।संसर्ग के अभिलाष में,नेह का स्खलन ।। नेह भाष अभिलाष,आत्मिक बिंब स्पंदन ।काय सुगंधि मलयज सम,आत्मसातता हिय मंडन ।संयत ओज वेगना ,आनंद ज्योत प्रज्वलन ।संसर्ग के अभिलाष में,नेह का स्खलन।।…