आधार

( Aadhaar ) 

 

मिले हुए संस्कार ही
करते हैं वैचारिक सृजन
सोच मे संगत का प्रभाव भी
संभावित है
किंतु ,यदि पृष्ठभूमि भी सुदृढ़ हो तो
बारिश की बूंदें गिरकर भी बह जाती हैं

जीवन की नींव मजबूत होनी चाहिए
तात्कालिक हवाएं
डालियों को झुका भले दें
दरख़्त को उखाड़ पाना सम्भव नही है

आवश्यक है समय की मांग भी
मांग के अनुसार परिवर्तन भी
पर,मांग और परिवर्तन के बीच
स्थायित्व का होना भी जरूरी है

लबादा ओढ़कर भले न चलें
पर ,नग्नता स्पष्ट झलकने लगे
ऐसे परिधान
आपकी निर्लज्जता को ही दर्शाते हैं

हमारे आज को देखकर ही
कल की पीढियां तैयार होती हैं
आधार का खोखलापन ही
महल को जल्द
खंडहर मे बदल देता है

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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