आरज़ू के फूल | Aarzoo ke Phool
आरज़ू के फूल
( Aarzoo ke Phool )
बिखरे हैं मेरे दिल में तेरी आरज़ू के फूल
आकर समेट ले ये तेरी जुस्तजू के फूल।।
ख़ुशबू हमारे वस्ल की, फ़ैली है हर जगह
हर जा बिछे हुए हैं, यहाँ गुफ़्तुगू के फूल
महफूज़ रक्खे दिल में तेरी चाहतें जनाब
और याद जिसने बख़्शे ग़म-ए-सुर्ख़रू के फूल
दिल का सवाल इतना था क्या है नसीब में
दिल का जवाब ये की ग़म-ए-आबरू के फूल
नफ़रत को जिस किसी ने भी मज़हब बना लिया
सौग़ात में मिले हैं उसे बस लहू के फूल
ख़्वाहिश थी जिसकी ख़्वाब मुकम्मल भी हो गया
ख़्वाबों में हमने पाए वफ़ाओं की बू के फूल
ख़ारों के संग ज़ीस्त में मीना यूँ शाल पर
इक उम्र से बना रही हूँ मैं रफ़ू के फूल
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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