Rafu na Karna
Rafu na Karna

रफ़ू न करना

( Rafu na karna ) 

 

मेरी क़ुर्बतों के ग़म में ,कभी दिल लहू न करना
मैं जहाँ का हो चुका हूँ, मेरी आरज़ू न करना

ये यक़ीन कर तू मेरा, मैं न भूल पाऊं तुझको
कहीं दिल खराब कर के, मेरी जुस्तजू न करना

कहीं जल न जाये तेरा, इसी आग में बदन भी
मेरे ज़ख़्म खौलते हैं, इन्हें तू रफ़ू न करना

सरे-बज़्म आबरू का मेरी ध्यान रखना मोहसिन
किसी ग़ैर की नज़र में, मुझे तुम से तू न करना

बड़ी मुश्किलों से साग़र हुई है बहार हासिल
यहाँ रंजो-ग़म की कोई, कभी गुफ़्तगू न करना

 

कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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