
आस्था
(Aastha )
था जो विश्वास मेरा वो टूटा नही,
आज भी आस्था मेरी तुम पे ही है।
राह मुश्किल भरें मेरे है तो मगर,
जीत की आरजू मेरी तुम से ही है।
क्या कहूँ क्या लिखू तुमसे न है छुपा,
शेर की भावना तुमसे ही है बँधा।
ठोकरों से उठेगा पुनः शेर जो,
साथ तेरा ये विश्वास तुम से ही है।
मुक्त मन का पथिक मुझको तुमने गढा,
मैने वो ही किया जो कि तुमने कहाँ।
राह कटंक भरे हो कि पुष्पक बिछे,
हूंक हुँकार मेरा तुम से ही है।
बाद वर्षो खिला शेर का ये हृदय,
लिख दिया हूबहू जो कि दिल ने कहाँ।
मेरे दाता दया दृष्टि रखना सदा,
शेर अस्तित्व मे बस तुम से ही है।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
waah ji waah bahot sunder rachna hai
Too good?
धन्यवाद आदरणीया??
धन्यवाद रश्मि जी??