आया बुढ़ापा ले मनमानी | Aaya Budhapa
आया बुढ़ापा ले मनमानी
( Aaya budhapa le manmani )
बचपन बीता गई जवानी आया बुढ़ापा ले मनमानी।
ना रही वो चुस्ती फुर्ती सारी बीती बातें हुई कहानी।
मंद पड़ी नैनों की ज्योति श्वेत केश जर्जर हुई काया।
बच्चे बड़े हुए पढ़ लिखके सबको घेर चुकी है माया।
अकेले अकेले कोने में बैठा काशीराम भी कांप रहा
न जाने कब दस्तक देती मौत की आहट भांप रहा।
आज बुढ़ापे की लाठी की महसूस हुई दरकार यहां।
अकेलापन मन को कोसे टूट चुका है घर बार यहां।
ऊंचे सपने ऊंचे ओहदे औलाद बुलंदियों को छुए।
सब कुछ होकर खाली क्यों इस पड़ाव पे हम हुए।
बुढ़ापा बीमारी का घर कदम फूंक फूंक कर रखना।
हंस हंस कर जीवन काटो प्रेम लुटाकर रस चखना।
नैनो से बरसे नेह धारा अधर बरसाए प्रेम प्यारा।
तुम सबके हो जाओ फिर आएगी सुख की धारा।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )