आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी | Acharya Shri Mahapragya Ji
आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी
( Acharya Shri Mahapragya Ji )
( 2 )
महाप्रज्ञजी का ध्यान धर ले ।
कर ले अंतर में होश
धर ले मन में संतोष ।
सच्चा सुख वही पायेगा ।
महाप्रज्ञजी का ध्यान धर ले ।
जग में जीना है दिन चार ।
धर्म से पावन कर ले अपने मन को ।
धर्म को सही से ह्रदय में धार ।
महाप्रज्ञजी का ध्यान धर ले ।
अपनी आत्मा को उज्ज्वल कर ले ।
घट में समता का अमृत भर ले ।
धर्म है सच्चा रखवाला ।
महाप्रज्ञजी का ध्यान धर ले ।
तन को धोकर उजला किया ।
भीतर का मैल अब तक ना गया ।
मन को प्रभु से लगा वैराग्य जगाये ।
महाप्रज्ञजी का ध्यान धर ले ।
सांसो में प्रभु का नाम जरा सुमरले ।
खाली जीवन के घट को सदगुण से भर ले ।
ज्ञान दीपक जगा अंतर तम को भगा ले ।
महाप्रज्ञजी का ध्यान धर ले ।
और – और के इस मोह में रम रहा ।
अपने जीवन को पल – पल में बदल रहा ।
आत्मा का “प्रदीप “ जला तज दे यह झूठी शान ।
महाप्रज्ञजी का ध्यान धर ले ।
(1)
महाप्रज्ञ जी का ध्यान धर ले ।
अपनी नैया भव से हम पार लगा ले |
खेवैया बनकर जीवन का लाभ कमा ले ।
महाप्रज्ञ जी का ध्यान धर ले ।
बहुत भयंकर है भव सागर,
डूब गये यहां कितने ही नर ,
सावधान होकर आगे बढ़े,
हम अपने साहस के बल पर ,
जीवन की ज्योति जगा ले ।
महाप्रज्ञ जी का ध्यान धर ले ।
काल अनन्त से भटक रहे जन ,
पता न कितने बदल चुके तन ,
पर न किसी का हो पाया है ,
अब तक अनुशासित यह जीवन
आत्म – दमन में हम नहा ले ।
महाप्रज्ञ जी का ध्यान धर ले ।
लक्ष्य न होता निश्चित जब तक ,
केवल भटकन रहती तब तक ,
पर हम सोचे जरा स्थिरता से ,
भटके जायेंगे यो कब तक ?
निश्चित लक्ष्य बना ले ।
महाप्रज्ञ जी का ध्यान धर ले ।
अपनी नैया भव से हम पार लगा ले |
खेवैया बनकर जीवन का लाभ कमा ले ।
महाप्रज्ञ जी का ध्यान धर ले ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)