अजनबी बन के | Ajnabi Ban ke
अजनबी बन के
( Ajnabi ban ke )
शाइरी तेरी लगे मख़मली कोंपल की तरह
कूकती बज़्म में दिन रात ये कोयल की तरह
अजनबी बन के चुराई है नज़र जब वो मिले
मुझको उम्मीद थी लगते वो गले कल की तरह
ख्वाहिशें दफ़्न हैं साज़िश है बदनसीबी भी
ज़ीस्त वीरान हुई आज है मक़्तल की तरह
मुस्तक़िल कैसे ठिकाना में बनाऊँ बतला
मेरी फ़ितरत है मेरे यार जो बादल की तरह
हाथ पाँव आप चलाओगे फँसोगे उतना
है ज़मीं लोभ की ये मान ले दलदल की तरह
यार किस्मत में ही घुँघरू है सो बेबस मैं हूँ
रात दिन बजती रही हूं किसी पायल की तरह
देखके हुस्न को बढ़ जाती है धड़कन दिल की
और महक जाता है ये जिस्म भी संदल की तरह
अम्न मिलता नही मीना न ही भाईचारा
अब है माहौल चुनावी किसी दंगल की तरह
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
यह भी पढ़ें:-