अखिल विश्व में
अखिल विश्व में
अखिल विश्व में ऐसा मौसम ,फूले और फले ।
पुरवाई से पछियाओ भी ,खुलकर मिले गले।।
छोटे और बड़े का कोई ,
कभी न दम्भ भरे ।
एक दूसरे के भावों का ,
आदर हुआ करे ।
मानवता का दीप क्षितिज पर ,
जगमग सदा जले ।।
अखिल विश्व में —–
कोयल कुहके महके अमुआ ,
बजे नित मल्हार ।
शब्दों के उदबोधन से भी ,
झरे प्रेम फुहार ।
दुर्भाव की मूँग कोई भी ,
प्राणी नहीं दले ।।
अखिल विश्व में —-
निशिवासर सौहार्द पवन के ,
झोंके यहाँ बहें ।
एक दूसरे की पीड़ा को ,
मिलकर सभी सहें ।
हिंसा वाला धर्म यहाँ पर ,
कोई नहीं चले ।।
अखिल विश्व में—
करे न कोई व्यक्ति यहाँ पर ,
शक्ति का अभिमान ।
मिट्टी में मिलते हैं अक्सर ,
एक दिन बलवान ।
प्रातः सूरज उदित हुआ तो ,
संध्या समय ढले ।।
अखिल विश्व में—–
साग़र चलो प्रयास करें हम ,
लिखें सद परिणाम ।
लिख जायेगा शिलालेख पर ,
अपना कभी नाम ।
विप्र बने रावण नहीं कोई ,सीता नहीं छले ।।
अखिल विश्व में—
पुरवाई से पछियाओ—

कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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