![Amit ki Ghazal Amit ki Ghazal](https://thesahitya.com/wp-content/uploads/2023/10/Amit-ki-Ghazal-696x464.jpg)
अमित की ग़ज़ल
( Amit ki GHazal )
साथ मेरे चली है ग़ज़ल
ज़िंदगी भर कही है ग़ज़ल
गुफ़्तगू रोज़ करती रही
दिलरुबा सी लगी है ग़ज़ल
ग़ैर का दुख भी अपना लगे
मुझमें शायद बची है ग़ज़ल
कैसे कह दूँ मैं तन्हा रहा ?
साथ मेरे रही है ग़ज़ल
ज़हनो दिल से जो हस्सास थे
उनके अन्दर पली है ग़ज़ल
इसको छूना बड़े प्यार से
एक नाज़ुक कली है ग़ज़ल
चंद शे’रों की ख़ातिर ‘अहद’
सो गये सब जगी है ग़ज़ल !