अंदाज जीने का | Andaaz Jeene ka
अंदाज जीने का !
( Andaaz Jeene ka )
( नज़्म )
अंदाज जीने का मुझको न आया,
गैरों की बाँहों में सोने न आया।
जुदाई का जख्म जल्दी भरता नहीं है,
खिंजाँ में मुझे गुल खिलाने न आया।
करती मोहब्बत बेपनाह मुझसे,
ख्वाबों में मुझको बुलाने न आया।
फलक से उतरती है किसी हूर जैसी,
मुझे रुख से परदा हटाने न आया।
छलकती है मदिरा आँखों से उसके,
मुझे सुर्ख होंठों से पीने न आया।
कसक है उसे कि मेरा घर सजाए,
मुझको उसे घर बुलाने न आया।
बारिश के कतरे जो गिरते हैं उसपे,
पलक से वो कतरा उठाने न आया।
बदन ज्योति उसकी आँखों पे पड़ती,
मुझे चाँदनी में नहाने न आया।
दिलकश अदाएँ वो करती हैं बेबस,
मगर लुफ्त मुझको उठाने न आया।
ख़तावार समझे भले मुझको दुनिया,
मुझे फूल राहों में बिछाने न आया।
कहीं दाग लग न वो जाए बदन पे,
हसीं ख़्वाब मुझको दिखाने न आया।
करती है नजरों से सुनों गुफ़्तगू वो,
मुझे हर गली घर बनाने न आया।
लेखक : रामकेश एम. यादव , मुंबई
( रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक )