अंग प्रदर्शन का कोहराम | Kavita
अंग प्रदर्शन का कोहराम
( Ang pradarshan ka kohram )
फिल्मी दुनिया वालों ने फैशन चलन चलाया है
फैशन के इस दौर में युवाओं को बहकाया है
संस्कार सारे सब भूले हो रही संस्कृति नीलाम है
चारों ओर शोर मचा अंग प्रदर्शन का कोहराम है
नदी किनारे बीच सड़क पर अर्धनग्न बालायें हैं
रंग बिरंगी चकाचौंध में घायल मंदिर मालाएं हैं
आस्था विश्वास भंवर में डगमग सारा घर ग्राम है
दिखावे की दुनिया में अंग प्रदर्शन का कोहराम है
खो गया विश्वास मन का जग हो रहा छलावा है
पश्चिमी सभ्यता का देखो संस्कृति पर धावा है
बेढ़ंगे परिधान पहनकर जन घूमते सरेआम है
आबरू सड़कों पर अंग प्रदर्शन का कोहराम है
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )