अन्नदाता

अन्नदाता

अन्नदाता

 

क्यूँ ! तुम जान लेने पर आमादा हो

इन बेकसूर और भोले भाले किसानों की

ये अन्नदाता ही नहीं है, देश की रीढ़ भी है

ये ही नहीं रहेंगे तो देश कैसे उन्नति करेगा……!

 

ये तो यूँ भी मर रहे हैं कर्ज़ तले दब कर

कभी फाँसी, कभी ज़हर, कभी ऋण

कभी फसलों के भाव, कभी प्रकृति की मार से

हे! आततायी जुल्मियों, तुम तो बख़्स दो

ना इतना कहर बरपाओ इन मुजलिमों पर…..

 

इन किसानों की मौत का हिसाब देना होगा

इनका संघर्ष जाया नहीं होगा कभी भी

दहाड़ेंगे ,गरजेंगे , टकराएंगे इन पांखण्डियों से

तड़पा लो भले ही कितना, हार नहीं मानेंगे

देख! रातों की नींद तुम्हारी उड़ जाएगी

ऐसा तूफ़ान देश में हम अब लाएंगे …….!!

 

?

कवि : सन्दीप चौबारा

( फतेहाबाद)

यह भी पढ़ें :

मैं अक्सर

 

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *