अपनी खुशियों को पंख लगाते हैं

अपनी खुशियों को पंख लगाते हैं | Kavita

अपनी खुशियों को पंख लगाते हैं

( Apni  khushiyon ko pankh lagaate hain )

 

चलो अपनी खुशियों को जरा पंख लगाते हैं।?️
फिर से दोस्तों की गलियों में छुप जाते हैं।?
फिर वही अल्हड़ पन? अपनाते हैं।
कुछ पल के लिए अपनी जिम्मेदारियों से जी चुराते हैं।?
फिर वही बचपना अपनी आंखों में लाते हैं।??
चलो यारों फिर से बचपना दिखाते हैं।
कुछ स्कूल की यादों को फिर अपनाते हैं।
कभी खट्टी कभी मीठी बातों का सिलसिला चलाते हैं। चलो यारों अपनी
खुशियों को जरा पंख? लगाते हैं।
कुछ ख्वाब बुनकर आसमा को छूकर आते हैं।
वो बालपन नटखट पन फिर अपनी जिंदगी में लाते हैं।
वह शरारत की दुकान फिर सजाते हैं।

चलो अपनी खुशियों को जरा पंख लगाते हैं।

फिर अपनी चुनर को हवा में लहराते हैं।
चलो ना यारों फिर से
बचपन में खो जाते हैं।

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लेखिका :-गीता पति ( प्रिया) उत्तराखंड

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