आशा झा की कविताएं | Asha Jha Poetry

लड़कियां

बढ़ती उम्र लड़कियों में परिवर्तन लाती
गिरती लड़खड़ाती फिर सम्हल जाती
संस्कार भरे हो जिसमें कूट कूटकर
माँ से सब कह दे जो फूट फूट कर
लुटेरो की पहचान आसान हो जाती
पर तारीफो के पुल उसे घमंडी बनाते
तलवार की धार पर उसको चलाते
गर वह स्वयं को आइना दिखाती
अंजान से कभी न जो दोस्ती बढ़ाती
उसकी राह में कभी भी न बाधायें आती
सच कहने की आदत जो लड़की अपनाती
यही आदत उसे विपत्तियों से बचाती
सच्चा दोस्त कभी भी गलत बात न सिखाता
माँ बाप से झूठ बोलने की राह न दिखाता
कसौटी पर परखने से सच्चाई नजर आती
परखकर जो लड़की हाथ आगे बढ़ाती
खुद को प्रेममंजिल की सीढ़ी चढ़ाती
कभी भी नहीं वह जीवन में पछताती

धैर्य का प्रतिफल

गुणो को निखारने में धैर्य की अहम भूमिका
धैर्य के बिना सुंदर चित्र न दे सके तूलिका
जब धैर्य से गुण का मिलन होगा
तभी हमें धैर्य का प्रतिफल मिलेगा ।
मिट्टी का गड्ढा खोदकर बीज बो दो
जल देकर उसे समय पर छोड़ दो
बीज से पौधा पौधे से फूल फल बनेगा
तभी हमें धैर्य का प्रतिफल मिलेगा
जन्म बचपन अल्हड़पन जवानी
बुढ़ापा के बाद मिलते अंतर्यामी
ईश्वर से जिस दिन मिलन होगा
उसी दिन धैर्य का प्रतिफल मिलेगा ।
बालवाड़ी विद्यालय विश्वविद्यालय में पढ़ेगा
विषयों में पारंगत हो नये कीर्तिमान गढ़ेगा
तभी उसे धैर्य का प्रतिफल मिलेगा ।
कला कोई भी मांगती रियाज है
साहित्य में शब्दों से खेलना रिवाज है
धर्म में भी धैर्य से जो रत रहेगा
उसे ही धैर्य का प्रतिफल मिलेगा
बहुत सी समस्यायें दूर नही होती प्रयत्न से
स्वतः ही दूर हो जाती समस्यायें समय से
धैर्य रखकर जो समय का इंतजार करेगा
उसे ही धैर्य का प्रतिफल मिलेगा ।

गौतम बुद्ध

बुद्ध पूर्णिमा के दिन जन्में बद्धपूर्णिमा के दिन पाया ज्ञान
बुद्धपूर्णिमा के दिन ही हुआ जिनका महापरिनिर्वाण
उसे ही हम गौतम बुद्ध कहते है ।
अक्रोध से क्रोध को भलाई से दुष्ट को
दान से कंजूस को सच से झूठ को
जीतना सिखाता जो
उसे ही हम गौतमबुद्ध कहते है ।
मुक्ति का कारण न करना इच्छाये
दुख का कारण इच्छायें बतायें ।
अनुभव को साक्षात प्रमाण माने
आत्मजयी को जग में विजेता माने ।
उसे ही हम गौतम बुद्ध कहते हें ।
इच्छा मोह राग द्धेष सबसे बड़े दोष
सुखमय होता संतोष .का आगोश ।
बताता हमें जो
उसे ही हम गौतम बुद्ध कहते हैं ।
मनुष्य को जीना चाहिये
होकर समाधिमान व शीलवान । .
मनुष्य को जीना चाहिये
होकर उदयमी व प्रज्ञावान ।
निष्ठा से जो धर्म करना सिखाता हो
उसे ही हम गौतम बुद्ध कहते है ।
सिर्फ अपने लिये जीकर कुछ नहीं रखा
नीरस मोक्ष प्राप्त करने में ।
आनंद का अनुभव करोड़
दूसरो को दुख से छुड़ाने में ।
जिनके विचार शक्ति और उर्जा देते हैं
उसे ही हम गौतम बुद्ध कहते है ।

मां का दिल

बिना लिखे बिना कुछ बोले
मन की माँ के समझ में आये ।
चेहरा देख समझ जाती माँ
दुख के बादल मन पर छाये ।
बिट्टू हो या बिट्टी के सिर पर
बार बार माँ हाथ फिराये ।
जब भी कोई कष्ट सताये
.माँ का हृदय तत्क्षण अकुलाये ।
निराश नहीं होना धैर्य नहीं खोना
बार बार माँ कहती जाये ।
कहे नहीं जग से हारो तुम
ईश्वर सदा रहे सहाय ।
जो भी होगा अच्छा होगा
फिर क्यों तेरा मन घबराये ।
फल की चिंता करें नही हम
कर्म अपना करते जायें ।
श्री कृष्ण बन जाती मझ्या
अर्जुन सा मुझको समझाये ।
आशा झा

आपरेशन सिंदूर

गोरी के वंशजो को तुम माफ न करो
आंतकियो को तत्क्षण साफ तुम करो
शांति का पाठ हम सब पढ़ते रहे
मानवता की मूरत हम गढ़ते रहे
सद्‌भावो के बीज हममें पलते रहे
दुश्मनो के हृदय फिर भी जलते रहे
भाईचारे का भाव अब तुम न रखो
आंतकियो को तत्क्षण साफ तुम करो ।
युवा पीढ़ी नशेड़ी बनाते रहे
खोखला देश की रीढ़ करते रहे
सामने से लड़ाई लड़ न सके
पीठ पीछे से हम पर वार करे
अंजाम देने से पहले निष्फल तुम करो ।
आंतंकियो को तत्क्षण साफ तुम करो
नापाक इरादो को भांपा करो
चार टुकड़ों में उनको बांटा करो
आंतकियों को जन में से छांटा करो
खाइयों में दुष्टो को पाटा करो
जो तुमको मारे उनको मारा तुम करो

नंदोत्सव छठोत्सव

विधा-गीत

ले लो ले लो बधाई श्रीकृष्ण जन्म की
दे दो दे दो बधाई श्री कृष्ण जन्म की ।
माँ यशोदा खुशी से समाती नही
दुनियाँ से तनिक भी लजाती नही
मुख बार बार चूमें अपने लल्ला की
ले लो ले तो बधाई श्रीकृष्ण जन्म की
घूम घूम कर नाच दिखाते कान्हा
अपनी पतली कमर मटकाते कान्हा
छवि सबको लुभाती रही कान्हा की ।
लेलो बधाई श्रीकृष्ण जन्म की ।
ढोल ताशे मृंदग बजाओ सभी
दे दे के ताल नचाओ सभी ‘ ।
चहूँ गूंजे मधुर स्वर शहनाई की ।
कृष्ण की बांकी झांकी निहारे सभी
लीलाओं को उसकी न जाने सभी
मंत्रमुग्ध देखे लीला लीलाधर की
देदो दे दो दिखाई श्रीकृष्ण जन्म की

 हिन्दी भाषा

विधा : पद्य कविता

आओ चलो दिखा दे हम
अपनी भाषा में जान है । ।
अपनी भाषा पुष्ट हुई तो
बढ़ता अपना मान है ।
भावो को विस्तार मिलता
अभिव्यक्ति को सार मिलता ।
रचनाओं का हार मिलता
अपनो सा व्यवहार मिलता ।
अपनी भाषा में ही देखो
सुर की चढ़ती तान है ।
त्रुटि नही व्याकरण की इसमें
न कोई संदेह है ।
सहज सरल मीठी होने से
सभी जनो को गेह है ।
संस्कृत भाषा जननी इसकी
किसी से न परहेज है ।
आने वाली हर भाषा को
रखती मन से सहेज है ।
हिन्दी भाषा में मिलकर
हर भाषा पाती मान है।
छल करते अपने ही बेटे
सेवा न निज मां की करते
दुर्बल हुई तो दुर्बलता का
दोष भी मां के सिर रखते ।
अपनाते दूजो की भाषा
आकर्षण में उसके बंधते
हिन्दी दिवस मना करके बस
पुत्र धर्म का पालन करते।
दिखलाते जग को फिर भी
हिन्दी का रखते ध्यान है ।
अपनी भाषा पुष्ट हुई तो
बढ़ता अपना मान है ।

आशा झा
दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )

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