Mahashakti ye Desh Bane
Mahashakti ye Desh Bane

महाशक्ति ये देश बने

( Mahashakti ye desh bane ) 

 

हक की बातें कम करते हो,देखा पिछली सालों में,
कितने नाम उछलकर आए स्विस बैंक,हवालों में।

जिसने देश आजाद कराया क्यों जेहन से भूल गए?
उनके नाम कहाँ छपते हैं आजकल अखबारों में।

घर कितने जला डाले देखो आस्तीन के साँपों ने,
खून से उनके हाथ सने हैं कुछ फँसे हैं जालों में।

सर उठाकर चलने का हक बता उन्हें किसने दिया,
जादू, मंतर, छूरी, नश्तर रहता उनके झोलों में।

हम ठहरे नग्में वाले औ हम ठहरे खुशबू वाले,
अच्छी बातें क्यों न आतीं उनके ख्वाब-ख्यालों में।

निगल जाते जमीं-आसमां अगर कहीं उनकी चलती,
थोड़ी-बहुत तो है कमी, हमारे भी जगने वालों में।

खिले होंठ सभी का भाई और आँखों में नमी न हो,
मातम की रस्में दिखती हैं देखो उनकी चालों में।

महफूज रहें चहुँ ओर सीमाएँ और सुरक्षित देश रहे,
करो देश की अच्छी सेवा नाम न छपे घोटालों में।

दुनिया बदली,मौसम बदला तूने स्वाद नहीं बदला,
करो न शामिल सोना-चाँदी मेरे यार नेवालों में।

कब रुक जाएँगी ये साँसें,इसकी क्या गारंटी?
महाशक्ति ये देश बने झूमें देश उजालों में।

 

रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),

मुंबई

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