और आँखे खुल गई

और आँखे खुल गई

विभागीय कार्य से आज सब इंस्पेक्टर मनोज अपने बेटे के कॉलेज में गया।मनोज का एकलौता बेटा अभिनव उसी कॉलेज में बीटेक की पढ़ाई कर रहा था। भले ही मनोज विभाग के कार्य से कॉलेज गया था, लेकिन कॉलेज में पहुंचते ही उसकी निगाहें अपने बेटे अभिनव को ढूंढने लगी।

उसकी अभिनव से मिलने की इच्छा बलवती हो उठी। शीघ्र ही यह इंतज़ार समाप्त हुआ। अचानक मनोज ने देखा कि कुछ दूरी पर अभिनव अपने कॉलेज के दोस्तों के साथ घेरा बनाकर खड़ा है और उनसे हंसी मजाक कर रहा है। अभिनव और मनोज की नजरें एक दूसरे से टकराई।

मनोज, अभिनव को देखकर बहुत खुश हुआ। उसने इशारे से उसको अपने करीब बुलाने की कोशिश की, लेकिन अभिनव ने दोस्तों के बीच रहना ज्यादा पसंद किया। उसने जानबूझकर पिता को ना तो दुआ-सलाम की और ना ही उनको कॉलेज में देखकर प्रसन्नता व्यक्त की।

वह दोस्तों से बातचीत करने में ही लगा रहा। फिर अभिनव अपनी पीठ पिता की तरफ करके खड़ा हो गया। अब मनोज ने दोस्तों के बीच खड़े अभिनव को आवाज देकर बुलाना ठीक न समझा और उसको कई बार कॉल की। लेकिन हर बार अभिनव कॉल डिस्कनेक्ट कर देता।

हद तब हो गई जब अभिनव ने मोबाइल को साइलेंट करके जेब में रख लिया। यह सब देखकर मनोज का पारा चढ़ गया। उसके जी में आया कि वहीं जाकर अभिनव की क्लास लगाऊं और उसको सबक सिखाऊं.. लेकिन उसकी इस हरकत से बात और अधिक बिगड़ जायगी।

इसलिए मनोज को धक्का लगा, वह जहर का घूट पीकर रह गया। उसे ऐसा लगा जैसे उसका यहां आना अभिनव को पसंद नहीं आया। उसका यहां आना बेकार गया। मनोज, अभिनव को बिना कोई पूर्व सूचना दिए अचानक कॉलेज आया था। उसे लगता था कि अपने पिता को देखकर अभिनव बहुत खुश होगा।

दौड़कर भाग कर उससे मिलने आएगा, उनके गले लगेगा। अपने दोस्तों से गर्व के साथ मुझसे मिलायेगा, लेकिन उसका यह भ्रम इतनी जल्दी टूट जाएगा। इसका उसे यकीन ना था। वह मायूस हो गया और सर पकड़कर बैठ गया।

वह यादों में खो गया। मनोज का बचपन काफी ग़रीबी में बीता था। बहुत मुश्किल से मेहनत मजदूरी करके उसने जैसे-तैसे अपनी पढ़ाई पूरी की और सब इंस्पेक्टर की नौकरी हासिल की थी।

नौकरी में आने के बाद से उसने सोच लिया था कि वह अपने बच्चों को कभी गरीबी में नहीं रखेगा, उनके लिए हर संभव सुख-सुविधाएं उपलब्ध करायेगा। उन्हें बड़े स्कूल-कॉलेज में पढ़ाकर बड़ा अफसर बनाएगा, भले ही इसके लिए उसे भ्रष्ट क्यों न बनना पड़े। अपनी इसी सोच के चलते वह भ्रष्टाचार में संलिप्त होता गया।

बिना रिश्वत लिए कोई काम नहीं करता था। इस नामी कॉलेज में एडमिशन के लिए मनोज ने एक मोटा डोनेशन कॉलेज को दिया था। उसे लगता था कि उसका बेटा बड़े कॉलेज में पढ़ेगा तो बेटे के साथ साथ उसका भविष्य भी उज्जवल होगा, लेकिन यहाँ तो उसको अपनी जिंदगी अंधकारमय नज़र आ रही थी।

मनोज का जूनियर सब इंस्पेक्टर अशोक, मनोज की इस रिश्वत लेने की आदत से बड़ा परेशान रहता था। वह आए दिन मनोज को समझाने की कोशिश करता और कहता-

“सर, रिश्वत लेना गलत है, पाप है। गरीब न जाने किस तरह मेहनत करके पैसा कमाता है। हमें उनकी हाय नहीं लेनी चाहिए। सर, आपने तो गरीबी देखी है। आपको इस बारे में सोचना चाहिए। हमें अपने काम करने का वेतन सरकार से मिलता है। परिवार के पालन पोषण के लिए हमारा वेतन पर्याप्त होता है।

अतः हमें अपना काम ईमानदारी से करना चाहिए। मेरे मां-बाप ने एक बात कही थी- ‘जैसा खाएगा अन्न, वैसा होगा मन’। मैं इस सूक्ति को याद रखता हूँ। मैं नहीं चाहता कि रिश्वत का एक भी रुपया या रिश्वत के पैसों से लिया गया अन्न या सामान मेरे घर में भी जाए। इस तरह के कामों से बुद्धि भ्रष्ट होती है।

सही गलत कुछ नज़र नहीं आता। बच्चों में गंदी आदतें, गलत संस्कार पड़ जाते हैं। खुद में भी गंदी आदतें, दुर्व्यसन पैदा हो जाते हैं। सर जी, मैं मानता हूँ कि रिश्वतखोरी से पैसा भरपूर आता है। हर चीज हमारी पहुँच में होती है, लेकिन यह भी सच है कि ज्यादा पैसा बुद्धि खराब कर देता है। ईमानदारी की कमाई में ही बरकत होती है।

मैंने तो अपने माता-पिता की बात गांठ बांध ली है कि मैं जीते-जी कभी रिश्वत नहीं लूंगा। बच्चों को अच्छी आदतें, अच्छे संस्कार दूंगा। उन्हें संतोष करना सिखाऊंगा। उन्हें रुपयों का मोल समझाऊंगा। जो शिक्षा मेरे माता-पिता ने मुझे दी, वहीं अपने बच्चों को दूंगा।

सर जी, मेरे पिता ने एक बात और कही थी- ‘पूत कपूत तो क्यों धन संचय?, पूत सपूत तो क्यों धन संचय? अर्थात अगर पुत्र सपूत है तो वह कम में भी संतुष्ट रहेगा, उसको किसी चीज की कभी कमी नहीं रहेगी और इसके विपरीत पुत्र अगर कपूत है, नालायक है, हरामखोर है तो… आप चाहें उसके लिए कितना भी कर लो, कितना भी जोड़ लो, वह उनका मोल न समझेगा, एक दिन सब बर्बाद कर देगा।”

“तू गरीब ही मरेगा अशोक। ना तो खुद मौज लेगा और ना ही बच्चों को करने देगा। तू और तेरे संस्कार।” यह कहकर मनोज अशोक की खूब मजाक उड़ाता।

अशोक, मनोज की बात का कोई जवाब न देकर मुस्कुराकर रह जाता। आज मनोज को अशोक की कहीं हर बात याद आ रही थी। उसे महसूस हो गया था कि अशोक की कही हर बात सच्ची थी। उसने अभिनव को हर सुख सुविधा दी।

लेकिन मां-बाप की व लोगों की इज्जत करवाना, अच्छे संस्कार, अच्छी शिक्षा, अच्छी आदतें विकसित करना भूल गया। मनोज को पता था कि अनुभव चोरी छुपे अय्याशी करता है, शराब पीता है, नशा करता है। लड़की और दोस्तों पर उसका पैसा उड़ाता है।

उसने अभिनव को कभी रुपयों की कमी न होने दी। इन कामों में मनोज को कभी बुराई नज़र न आई लेकिन आज उसे अभिनव के द्वारा खुद के नजरअंदाज करने पर गुस्सा आ रहा था। उसे लगता था कि उसका बेटा इन रुपयों के कारण उसकी इज़्ज़त करेगा।

उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका इकलौता बेटा उसके साथ ऐसा कर सकता है? क्या यही दिन देखने के लिए उसने अपने बेटे का एडमिशन इतने बड़े कॉलेज में कराया? इससे अच्छा तो यही होता कि वह अपनी नौकरी के ईमानदारी के पैसों से उसे किसी सरकारी स्कूल में पढ़ाता… लेकिन अब क्या हो सकता था? उसका इकलौता बेटा हाथ से निकल गया था।

क्या पता था कि जिस बेटे की पढ़ाई-लिखाई के लिए वह धन दौलत इकट्ठी कर रहा था, रिश्वत ले रहा था… उसका यह परिणाम होगा। किसी ने सच ही कहा है कि ईमानदारी के रुपए में ही बरकत होती है। बेईमानी का पैसा कभी नहीं रुकता। वह किसी न किसी बहाने से हाथ से निकल ही जाता है।

आज उसे खुद पर घिन आ रही थी। कॉलेज से निकलते वक्त मनोज की आंखों पर रिश्वतखोरी का पड़ा परदा हट गया था उसने सोच लिया था कि वह अब कभी रिश्वत नहीं लेगा और ईमानदारी से अपना काम करेगा। भले ही अगले साल उसे अपने बेटे को इस कॉलेज से निकलवाना ही क्यों ना पड़े?”

लेखक:- डॉ० भूपेंद्र सिंह, अमरोहा

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