कपटी दुकानदार
6 माह पुरानी बात है। स्कूल जाते समय मैंने एक किराना दुकानदार से 25 रुपए की नमकीन का एक पैकेट लिया और भुगतान करने को दुकानदार को 200 का नोट दिया। पेमेंट करके मैं दुकान से बाहर निकल गया।
लगभग 3 किलोमीटर दूर जाने पर मुझे ध्यान आया कि दुकानदार ने मुझे 75 रुपये वापिस किये हैं जबकि उसे 25 रुपये नमकीन के काटकर मुझे 175 रुपए वापिस लौटाने थे। मुझे लगा…. हो सकता है कि मेरी तरह दुकानदार भी भूल गया हो कि वह नोट 100 का नहीं, बल्कि 200 का है। मैंने सोचा- अब तो मैं काफी दूर आ गया हूँ… एक काम करता हूँ कि कल सुबह जब उस दुकान की तरफ से स्कूल आने के लिए गुजरना होगा, तब दुकानदार से कुछ और सामान ले लूंगा।
सामान लेने के बाद दुकानदार से आज के सौ रुपए के बारे में बातचीत करूंगा। अगर उसे ध्यान रहा तो उन ₹100 को मैं सामान के रुपयों में एडजस्ट करवा दूंगा। अगर उसको ध्यान नहीं रहा तो फिर सामान के रुपये देना मजबूरी है। मुझे यही उपाय ठीक लगा। उस दिन मात्र 100 रुपये के चक्कर में किराना दुकान पर जाना ठीक नहीं लगा।
अगले दिन सुबह मैं पुनः किराना दुकान पर पहुंचा। उस दिन मैंने ₹50 का सामान लिया। मैंने दुकानदार से पूछा-
“श्रीमान जी, आपको याद होगा कि कल मैं आपकी दुकान पर आया था। मैंने आपसे ₹25 का सामान लिया था और 200 का नोट आपको दिया था। बदले में अपने मुझे सिर्फ ₹75 लौटाये थे, जबकि आपको 175 रुपए लौटाने चाहिए थे।”
“मुझे कल का ध्यान नहीं। अगर आपको यह लग रहा था कि मैंने रुपये कम दिए हैं तो आप कल ही मेरे पास आ जाते।”
“दरअसल बात यह थी कि मैं इस रास्ते से रोज स्कूल जाता हूँ। कल जब मुझे 100 रुपये कम का एहसास हुआ, तब तक मैं काफी दूर निकल गया था। मुझे उस समय आपके पास लौटकर आना ठीक नहीं लगा। अब आप बताओ, क्या आपको इस बात का ध्यान है?”
“नहीं। मुझे तो याद नहीं।”
“अच्छा ऐसा है। अगर आपको याद नहीं है तो फिर ठीक है।” मैंने अपनी जेब से रुपये निकाले तो मेरे पास 500 रुपये का एक नोट व 30 रुपये(10 रुपये के तीन नोट) थे। दुकानदार को सामान के 50 रुपये देने थे तो मैंने 500 का नोट दुकानदार की तरफ बढ़ाते हुए कहा-
“यह लीजिए 500 रुपए और सामान के ₹50 काट लीजिए।”
उस दुकानदार ने सामान के रुपए काटकर मुझे डेढ़ सौ रुपए लौटाये। ध्यान देने वाली बात यह है कि सामान मात्र ₹50 का था और मैं भी इतना पागल कि डेढ़ सौ रुपए जेब में रखकर, दुकान से बाहर निकल आया। बमुश्किल 50 मीटर दूर ही गया था कि मेरे दिमाग ने फिर से काम करना शुरू किया।
यह क्या हो रहा है मेरे साथ? मैं तो अपने कल के ₹100 लेने के लिए इस दुकान पर आया था और आज ₹500 का नोट देने के बाद डेढ़ सौ रुपए हाथ में लेकर ही बाहर आ गया। मैं स्तब्ध था।
किराना दुकान से निकले मुझे बमुश्किल 2 मिनट हुए थे। मैं भाग कर पुनः दुकानदार के पास पहुंचा और दुकानदार से कहा-
“श्रीमान जी, कल की तरह आज भी गड़बड़ हो गयी है। अभी मैंनें आपको 500 का नोट दिया था और यह देखिए आपने बदले में मात्र मुझे डेढ़ सौ रुपए दिए हैं। शायद आज आपने 500 के नोट को 200 का नोट समझा है। इसलिए आपने मुझे डेढ़ सौ रुपए वापिस किये हैं।”
ऐसे कैसे हो सकता है? आप ध्यान से अपनी जेब में देखो। मैंने आपको सारे रुपये वापिस कर दिए हैं।”
“ऐसा नहीं है। अगर मुझे पूरे रुपये मिले होते तो मैं पुनः यहाँ क्यों आता। मैंने आपको 500 का नोट दिया है। एक बार देख लीजिए, आपके गल्ले में पड़ा होगा।”
दुकानदार ने अपना कैश काउंटर देखा तो उसमें 500 का नोट था।
“सर, आपको मुझे ₹350 लौटाने चाहिए थे, लेकिन आपने मात्र 150 रुपये लौटाये।”
“ऐसे कैसे हो सकता है। मैंने आपको 350 रुपए ही लौटाये थे। आप अभी थोड़ी देर पहले भी इसी तरह की बातें करके मुझसे 100 रुपये ऐंठना चाहते थे। अब फिर मेरी दुकान पर आकर मुझे झूठा ठहराने की कोशिश कर रहे हो। जब आपने सामान लिया था और मैंने आपको सामान के रुपये काटकर बाकी रकम दी थी, तभी आपको रुपए चेक करने चाहिए थे।”
“अरे सर, मुझे आपकी दुकान से गए हुए 1 मिनट भी नहीं हुआ। दो दुकान आगे पहुँचकर मुझे अचानक ध्यान आया। इसलिए मैं आपके पास लौट के आया। मुझे यही लगा, कहीं मैं कल की तरह बहुत आगे ना निकल जाऊं।”
“अरे भाई, मुझे पूरा ध्यान है कि मैंनें आपको 350 रुपए लौटा दिए थे। अब मैं कुछ नहीं कर सकता।”
“ऐसे कैसे कुछ नहीं कर सकते? आप बेईमानी कर रहे हो मेरे साथ। बहुत गलत कर रहे हो।” मैंने गुस्सा करते हुए कहा।
दुकानदार ने अपने लड़के को आवाज लगाते हुए कहा-
“बेटा जरा बता, मैंने भाई साहब को कितने रुपए दिए थे?”
तुरंत बोला- “₹300 के लगभग आपने इनको रुपये दिए थे।” उसके लड़के ने शायद मेरी दुकानदार से नोकझोंक सुन ली होगी। जबकि मुझे अच्छी तरह ध्यान था कि जब मैने दुकानदार को पेमेंट करने के लिए 500 रुपये दिए थे, तब उसका लड़का वहाँ नहीं था। मुझे बेहद गुस्सा आ गया। मैं गुस्से से बोला-
“हद है झूठ बोलने की भी… बाप बेटा दोनों मिले हुए हैं। मुझे पूरा ध्यान है कि जब आपने मुझे 150 रुपये वापिस किये थे, तब आपका लड़का वहाँ नहीं था। अब इसको कैसे पता कि आपने मुझे 300 के लगभग रुपये दिए। मैं आपको अच्छा दुकानदार समझता था लेकिन आप इस तरह मेरे साथ धोखाधड़ी करोगे, यकीन न था। आज के बाद मैं आपकी दुकान पर कभी नहीं आऊंगा।”
यह बोलकर मैं दुकान से बाहर निकल आया। गुस्से से दुकान से बाहर निकलते हुए मेरे दोस्त राजीव ने मुझे देख लिया। मेरे करीब आकर उसने मुझसे पूछा-
“क्या हुआ? कोई बात हो गई क्या?” गुस्से में क्यों है?”
मैंने कल व आज की दुकानदार द्वारा धोखाधड़ी करने वाली पूरी बात उसको बताई। मेरी बात सुनकर राजीव बोला-
“तू पागल हो गया है क्या? जब तूने ₹50 का सामान लिया था तो तुझे ₹450 दुकानदार से वापस लेने चाहिए थे। तूने जाकर दुकानदार से 350 क्यों मांगे? और हैरानी की बात यह है कि वह दुकानदार भी 350 रुपए देने की बात कर रहा था। उसका लड़का भी 350 रुपए के आसपास तुम्हें रुपये देने की बात कर रहा था।
इसका मतलब यह है कि वह दुकानदार फ्रॉड है। उसने जरूर दुकान में कुछ जादू टोना या टोटका करवा रखा है, जिस कारण तेरी बुद्धि वहां पहुंचकर भ्रष्ट हो जाती है और तू हर बार रुपए गंवा कर आ जाता है।
मुझे लगता है कि अब चाहकर भी कुछ नहीं हो सकता क्योंकि अगर तुम दुकानदार से लड़ोगे तो वह आसपास के दुकानदार को बुला लेगा। हर दुकानदार उसके पक्ष में ही बोलेगा और तेरी गलती बतायेगा। सब यही कहेंगे कि जब सामान लिया था तभी रुपए देखकर जेब में रखने चाहिए थे। तुम गलत साबित हो जाओगे।”
“बात तुम्हारी बिल्कुल ठीक है। पता नहीं क्यों, उसकी दुकान से हटते ही या कुछ दूर जाते ही मुझे सब कुछ याद आ रहा है। दुकान में पहुँचकर मैं उसके इशारों पर नाचने लगता हूँ। वह जैसे बोलता है, कहता है… सच मान लेता हूँ। मेरा कोई जोर नहीं चल रहा। मेरी बुद्धि वैसी हो जाती है। लग रहा है कि मेरी बुद्धि खराब हो गई है या फिर मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है।
तुम्हारी बात भी सही हो सकती हैं कि उसने कोई जादू टोना दुकान पर करवा रखा हो, जिसके भ्रम जाल में पड़कर ग्राहक होश गंवा देता हो, उसकी सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती हो? भगवान जाने क्या है? विचारणीय प्रश्न यह भी है कि प्रत्येक दुकानदार को तो अपने कैश काउंटर का पता रहता है कि किसका कितना पेमेंट आया और कितना गया?
फिर वह दुकानदार मुझे बेवकूफ क्यों बना रहा है? बस मैं इतना जानता हूँ कि इस जैसे इंसान का कभी भला नहीं हो सकता। देर सवेर उसके कर्मों की सजा उसे मिलेगी जरूर।”
राजीव बोला- “एक काम कर। एक बार फिर से कल को उसकी दुकान पर जाना और खरीदारी करते व पेमेंट करते वक़्त उसकी वीडियो बनाना। हो सकता है कि उसकी चोरी पकड़ में आ जाए।”
“ना जी ना। मैं दो बार नुकसान उठा चुका हूँ। अब तीसरी बार उसकी दुकान पर नहीं जाऊंगा। मुझे ऐसे व्यक्ति पसंद नहीं हैं, जो मेरे साथ धोखा करें, विश्वासघात करें, बेईमानी करें या अपनेपन का ढोंग करें। ऐसे इंसान से मैं हमेशा के लिए दूरी बनाकर हर रिश्ता, सम्बंध खत्म कर लेता हूँ।
यार राजीव, सबसे बड़ी बात यह है कि उस दुकानदार ने मेरी ईमानदारी पर ही सवाल उठा दिया है। कल वाली बात का मुद्दा बनाकर वह मुझे ही गलत ठहराने लगा था। जैसे वह यह कहना चाह रहा था कि कल वाली बात का मुद्दा उठाकर मैं आज उससे रुपये ऐंठने आया हूँ। मैं कभी उस दुकान से सामान लेने नहीं जाऊंगा। मैंने सब कुछ अब ईश्वर पर छोड़ दिया है। इस दुष्ट दुकानदार को सबक अब ईश्वर ही सिखाएंगे।” यह कहकर मैं राजीव से विदा लेकर आगे बढ़ गया।
इसके बाद मैं फिर कभी उस दुकानदार की दुकान पर नहीं गया। लगभग 6 माह बाद पता चला कि उसने बाकी लोगों को भी मेरी तरह ठगने की कोशिश की थी। बहुत बार वह कामयाब भी हुआ लेकिन एक दिन उसकी चोरी पकड़ी गई। ग्राहकों ने पकड़कर उसे मारा-पीटा। उसकी बड़ी बदनामी हुई। उसके बारे में जानकर उसकी दुकान पर ग्राहकों ने जाना बेहद कम कर दिया।
फलस्वरुप उसका काम ठप हो गया। लोग सच कहते हैं कि ईमानदारी की कमाई में ही बरकत होती है। बेईमानी देर सवेर पकड़ में आ ही जाती है, तब इंसान किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहता। उसकी झूठी इज़्ज़त को मिट्टी में मिलते देर नहीं लगती।”

लेखक:- डॉ० भूपेंद्र सिंह, अमरोहा
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