बच्चों का बचपन | Bacchon ka Bachpan
बच्चों का बचपन
( Bacchon ka bachpan )
( 2 )
किस ओर
जा रहे हैं बच्चे
धकेल रहे हैं
अंधविश्वास और अंधभक्ति की तरफ
क्यों छिन रहे हो
उनका बचपन
क्यों काट रहे हो उनके पंख
उड़ने दो
हिंसकवादी ना बनाओं
धर्म का प्रचार ना करवाओ
बच्चों में नफ़रत ना भरो
अभी वो खाली पन्ने हैं
उन पन्नों को भरो
अपनी तहजीब से
अपनी संस्कृति से
अपनी रीति रिवाज से
अपनी खेती बाड़ी से
अपनी रिश्तेदारी से
अपनी अदबी खुतबे से
और भाईचारा से
मिशाल पेश करवाएं
मिशाल बना ओ
ना काटो उनके सपनों के पंख को
सपने लेने दो खुले गगन में
समाजवाद को लाने का
साम्राज्यवाद भगाने का
साम्प्रदायिक सद्भाव बनाने का
सपने लेने दो खुले गगन में
दलित की झुग्गी-बस्तियों में पकी हुई रोटी
पुरोहित के घर बनी हुई खीर पुड़िया
चखने दो
दोनों घर का स्वाद
ना उजाड़ों बच्चों का बचपन
खेलने दो
उड़ने दो
पंखों को
खुले गगन में…?
मनजीत सिंह
सहायक प्राध्यापक उर्दू
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ( कुरुक्षेत्र )
( 1 )
एक विचार हरदम है मन में आता
आज बच्चों में जैसे बचपना कहीं नजर ही न आता
समय के इस दौर में लगता हैं मानो,
कहीं गुम हो गया हैं हमारे बच्चों बचपन
इस इंटरनेट की दुनियाँ ने मानो,
छीन लिया हैं, हमारे बच्चों का बचपन
आज के इस कॉम्पिटिशन के समय में मानो,
कहीं किताबों के बोझ तले दब गया हैं बच्चों का बचपन
अब आंगन में दौड़ता-भागता कहाँ नजर आता हैं बचपन
आज जब मन में आया विचार क्या होता है बचपन
तब याद आया अपना इधर से उधर इठलाता बचपन
न जाने अब कहाँ गुम हो गया हैं, हमारे बच्चों का बचपन
मंजू की लेखनी का है सबसे यही कहना
बच्चों का बचपन तो है जैसे उनका गहना
उसके बिन न सजता उनका जीवन
कभी न छीने किसी वजह से उनका बचपन
मंजू अशोक राजाभोज
भंडारा (महाराष्ट्र)