गृहलक्ष्मी तुम्हें नमस्कार

( Grihalakshmi tumhe namaskar ) 

 

घर आंगन की ज्योति तुम हो, तुम दीपों की हो बहार।
तुम घर की महारानी प्यारी, तुम प्रियतम का हो प्यार।
गृहलक्ष्मी तुम्हें नमस्कार

झिलमिल दीपों सी रोशन हो, दमकता चेहरा तुम्हारा।
मनमंदिर में बसने वाली, दिव्य ज्योति हो उजियारा।
जीवन पथ की हो संगिनी, भावों की बहती रसधार।
धरा भांति धीरज धारे, सावन सा बरसे स्नेह अपार।
गृहलक्ष्मी तुम्हें नमस्कार

अतिथि का आदर करती, बड़ों को मिले मान सम्मान।
गृहस्थी का धर्म निभाती, सौम्य शील गुणों को धार।
घर की मान मर्यादा का, सफल गृहणी रखती ध्यान।
प्रगति पथ पर अग्रसर हो, संजोती घर के संस्कार।
गृहलक्ष्मी तुम्हें नमस्कार

ममता स्नेह दुलार लुटाती, महकाती बगिया सारी।
सुख दुख धूप छांव भांति, सह लेती भारत की नारी।
सूझबूझ समरसता की, प्रेम की बहती पावन धार।
कीर्ति पताका लहराती, सबकी खुशियों का संसार।
गृहलक्ष्मी तुम्हें नमस्कार

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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