बदलते देखा | Badalte Dekha
बदलते देखा
( Badalte dekha )
हमने मौसम को कई रंग बदलते देखा
वक्त हाथों से कई बार निकलते देखा।
जिन निगाहों में थी आबाद मुहब्बत मेरी
ग़ैर का ख़्वाब उसी आंख में पलते देखा।
जो मेरा दोस्त था वो आज मुख़ालिफ़ यारो
बात बेबात ज़हर उसको उगलते देखा।
वो मुसव्विर हो सिकंदर हो या के हो शायर
हुस्न की ताब से हर शख़्स पिघलते देखा।
वसवसों और बदगुमानियों से बचना तुम
आतिशे शक से कई रिश्तों को जलते देखा।
बन के फ़िर ‘औन नहीं आंकना कमतर सब को
हमने सूरज को यहां शाम को ढलते देखा।
ज़िक़्र मेरा हो तो मौज़ू ही बदल देता है
उस दिवाने को नयन आज सॅंभलते देखा।
सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )