बदलते समय के साथ बदलती हुई हिंदी को स्वीकार करना वक्त की जरूरत है
बदलते समय के साथ बदलती हुई हिंदी
( Badalte samay ke sath badalti hui Hindi )
हिंदी दिवस आते आते हिंदी भाषा की चर्चा जोर पकड़ लेती है। हर तरफ हिंदी भाषा की चर्चा शुरू हो जाती है। सरकारी कार्यालयों, स्कूल कॉलेजों में हिंदी दिवस के अवसर पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और हिंदी दिवस बीतने के साथ इसे भुला दिया जाता है।
हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला है लेकिन आज भी भारत में ही हिंदी अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही है। संविधान में राजभाषा अधिनियम के अंतर्गत यह निर्देश है कि हर कार्यालय में एक हिंदी ऑफिसर जरूर होना चाहिए।
ऐसा नियम है कि हिंदी ऑफिसर अपने कार्यालय में हुए कामकाज का हिंदी में अनुवाद करके रिपोर्ट आदि बनाये। इस अवसर पर कार्यालय कर्मियों के बीच हिंदी को लेकर प्रतियोगिताएं भी कराई जाती हैं और इसमें हिंदी के विद्वानों को भी बुलाया बुलाया जाता है।
हर साल हिंदी दिवस आता है और चला जाता है लोग इस मौके पर हिंदी मीडियम, हिंदी लेखक, हिंदी अध्यापक, हिंदी चिंतक, सब हिंदी की बातें करते हैं। लेकिन इसके बाद उस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है।
अक्सर देखा जाता है कि हिंदी भाषा की उपेक्षा की जाती है और अंग्रेजी से तुलना में की जाती है। स्कूल और कॉलेजों में हिंदी किस तरह से पढ़ाई जा रही है इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है।
इस साल देखा गया है कि यूपी बोर्ड में दसवीं और बारहवीं के बच्चे हिंदी विषय की परीक्षा में फेल हो गए हैं इसके बारे में जब एक परीक्षक से पूछा गया तब उन्होंने कहा कि छात्रों को सही ढंग से हिंदी भी लिखने नही आती है क्योंकि वह हिंदी में हिंदी शब्दों की जगह अंग्रेजी भाषा के शब्द जैसे “कॉन्फिडेंस” को हिंदी देवनागरी लिपि में लिखते हैं।
दरअसल समय के साथ हिंदी में काफी बदलाव आ रहा है क्योंकि हिंदी भाषा एक ऐसी भाषा है जो अपने साथ-साथ अन्य भाषाओं को भी समाहित कर लेती है। हिंदी अंग्रेजी के शब्दों को भी अपने में समाहित कर लेते हैं, पंजाबी गुजराती भाषा को भी अपने में समाहित कर लेती है, उर्दू के शब्दों को भी अब हमें समाहित कर लेती हैं।
आजकल सोशल मीडिया पर जिस तरह की हिंदी देखने और पढ़ने को मिलती है उससे हिंदी विद्वानों को चिंता होती है। दरअसल हिंदी भाषा में हिंदी के साथ अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल हो रहा है जिसे इंग्लिश कहा जाता है।
एक तरह से कहले की हिंदी भाषा के साथ ही हिग्लिश का विकास हो रहा है। लेकिन वर्तनी को लेकर यह गड़बड़ी सिर्फ हिंदी भाषा में नही है बल्कि अन्य दूसरी भाषाओं में भी देखी जा रही है। अंग्रेजी भाषा भी बदल रही है। अंग्रेजी भाषा में भी अब हिंदी के कुछ कुछ शब्द प्रयोग होने लगे हैं।
यह समय की जरूरत है कि हिंदी शिक्षक और प्रोफेसर सिर्फ परीक्षा तक सीमित न रहें बल्कि विद्यार्थियों को हिंदी सीखने के प्रति अपने गैर जिम्मेदार रवैये को छोड़कर आगे बढ़ कर हिंदी में कुछ बदलाव करके एक मानक को अपनाकर हिंदी को बढ़ाएं और सिखाये।
अगर कोई अध्यापक हिंदी में कॉन्फिडेंस जो कि अंग्रेजी का शब्द है, अगर देवनागरी लिपि में लिखा जाता है या फिर यात्रा की जगह अगर कोई विद्यार्थी सफर लिख देता है, जो कि उर्दू का शब्द है तो इसके लिए उसे फेल नहीं करना चाहिए।
हिंदी वादी को डबल स्टैंडर्ड का नही होना चाहिए। बल्कि बदलते वक्त के साथ हिंदी में होने वाले इस बदलाव को भी स्वीकार करना चाहिए। शुद्धता वाद के पीछे भागने से कुछ नहीं होने वाला है।
बेहतर है कि हिंदी भाषा जैसे है इसे स्वीकार किया जाये क्योंकि हिंदी भाषा का विकास संस्कृत भाषा से हुआ है और हिंदी भाषा एक ऐसी भाषा है जो अपने अंदर हर भाषा हर बदलाव को समाहित करने की क्षमता रखती है। इसकी इसी गुण को वजह से आज हिंदी तेजी से विकास कर रही है।
भारत में हिंदी की स्थिति भले चिंताजनक हो लेकिन दुनिया के तमाम देशों में हिंदी जानने, पढ़ने और सीखने की मांग काफी तेजी से बढ़ रही है।
अगर बोलने वाले लोगों की संख्या की दृष्टि से देखा जाए तो पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा चीनी भाषा बोली जाती है, दूसरे स्थान पर अंग्रेजी भाषा है और तीसरे स्थान पर हिंदी भाषा है। आज दुनिया के कई देशों में हिंदी भाषा के अध्यापन कार्य किए जा रहे हैं।
यह समय की जरूरत है कि इस बदलती हुई हिंदी को समझें और इसके हिसाब से हिंदी को अपडेट करें और बदलते हुए हिंदी के साथ इसको बदले, इसके व्याकरण को बदले और शब्दकोश को बदले और हिंदी के इस नए स्वरूप को सहजता से स्वीकार करें और इसे बढ़ावा दे।
लेखिका : अर्चना