बदली का स्वैग | Badli ka Swag
बदली का स्वैग
( Badli ka swag )
हवा के परों पर
उड़ती हुई सी आई
एक बदली-
छोड़ सारे राग-रोग
जम -ठहर गई
रमा के जोग।
आंँखों में है आकाश
कर में बूँदों का पाश
छलकेगी- बरसेगी
देगी आज जीवन
औ धरा को सांँस-
इस उन्मत्त बदली को
शायद है पता-
उसके यूँ झरते
मृदुल हास
के सिवा धरा पर
धरा है और क्या !!
( साहित्यकार, कवयित्री, रेडियो-टीवी एंकर, समाजसेवी )
भोपाल, मध्य प्रदेश
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