वैशाखी | Baisakhi par Kavita
वैशाखी
( Baisakhi )
लहलहाती फसल खेत में
खुशियों की घड़ी आती है
झूम उठते सब मस्ती में
फसलें कटने को आती है
गंगा धारा बह अवनी पे
अवतरित हो जब आई
वैशाखी का पावन दिवस
हर्ष उमंग घट घट छाई
खास खालसा सिक्खों का
भावन नृत्य भांगड़ा भाई
हलवा पूरी खीर जिमाए
संग मक्का दी रोटी लाई
फसल कटे आई वैसाखी
सुंदर सुंदर सजती झांकी
मेले लगते ढोल बजते हैं
विविध वेशभूषा अनोखी
गंगा स्नान सब करते
सब ही गुरुद्वारा जाते
हंसते गाते मुस्कुराते
वैशाखी त्योहार मनाते
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )