बापू 

बापू | Gandhi Smaran

बापू 

( गाॅंधी स्मरण )

( Bapu : Gandhi Smaran )

 

तीन  गोलियों  से  तुमने  चिर  जीवन  पाया

बापू !  तुम  अश्वत्थामा  बन  अमर  हो  गये

और  हजारों  बरसों   की   कटुता  मलीनता

अपने  शोणित गंगाजल  से  सहज धो गये !!

 

लेकिन तुमने  जिन  पुत्रों से  प्यार  किया था

जो  थे  रूठ  रूठ  कर   तुमसे   तुम्हें  मनाते

पल भर को  तुम आज यहाँ आकर यह देखो

तुमसे  पाई   आजादी   किस तरह  बिताते !!

 

कृष्ण  बने  तुम  अपने  जीवन  की  गीता  दे

छोड़ गये जीवन रण  लड़ते  अर्जुन अगणित

चरखे  और  अहिंसा  के    दो  अस्त्रों  से  पर

उनकी हार जीत में अबतक हुई न परिणित !!

 

दलितों   के   उद्धार   हेतु     संकल्प   तुम्हारे

याद  रहे  हैं   यों   सबको  अब  भी  अक्षरशः

अब   भी   आँसू   मंचों   पर   ढरकाये  जाते

पीड़ित  मानवता  की  रक्षा के  हित शतशः !!

 

तुमने  चाहा  था   समाज  के  स्थापित  जन

टूटे   बिखरे    तबकों   से    सम्बन्ध   बढ़ाएं

किन्तु तुम्हारे  उन्हीं  विचारों  की  लाठी अब

उगा  रही  है   प्रति  हिंसाएं   और   घृणाएं !!

 

हरिजन  और  भूमिजन  के   वर्गों  में  से  ही

नव  सवर्ण  अब  बनते  हैं   सुविधाएं  पाकर

कर्म  सत्य  संस्कार  हीन   विद्रोही   बन कर

लिखते नये  सर्ग  शोषण  के  ऊपर जाकर !!

 

तुमने  हमें  अहिंसा  वाद  सिखाया  था  तब

सात  दशक  पहले जब  आई  थी  आजादी

हमने उसका पूर्ण प्रशिक्षण  प्राप्त कर लिया

और बात यह  सारी दुनिया को  बतला दी !!

 

तुमने  जो कुछ भी  चाहा हो  हमें  सिखाना

हमने जो  चाहा  वो  हम सब  सीख  गये  हैं

मात्र  अहिंसा  में  से  ‘अ’  को   त्यागा  हमने

‘सत्’ चाहे  छोड़ा  हो  आग्रह  सीख गये हैं !!

 

अब  हम सब  भारत  में हैं आरम्भ  कर रहे

राजनीति   की   दर्शन  की  परिपाटी  नूतन

जो  जाकर   बैठेंगे  अब   सर्वोच्च  पदों  पर

वे  भी  नहीं  सुरक्षित   रख   पाएंगे  जीवन !!

 

असम आन्ध्र पंजाब बिहार कश्मीर सभी तो

हिंसा   के   आतंकों    के    पर्याय   बने   हैं

शासन  से  न्यायालय  तक  के  संविधान के

आज  सभी  वे  मन्त्र  यहाँ अन्याय  बने  हैं !!

 

जीवन भर  तुमने  चाहा  कि  हिन्दू  मुस्लिम

प्यार  करें    लड़ना   छोड़ें   दंगो  फसाद  में

लेकिन  सैंतालीस,   भिवंडी  और  अलीगढ़

की  ज्वाला  अब भी  बैठी है  फैजाबाद में !!

 

देश विभाजन  का वह  जहर पिया था तुमने

शान्ति  बन्धुता  हेतु स्वयं की आहुति  दे कर

गोली  बम  आतंक  आज फिर  उसी देश में

नये विभाजन चाहें  प्राणों की  बलि  लेकर !!

 

तुमने  चरखा  तकली  के   सन्देश   दिये  थे

सचमुच तुम  भविष्य दृष्टा थे अब  लगता है

जिसे  आय  से  मिलती  नहीं  पेट भर  रोटी

कैसे कपड़ों पर भी  वह व्यय कर सकता है ?

 

अकसर   अखबारों   में  हम   पढ़ते  रहते  हैं

जो   होतीं   शराब  बन्दी   पर   नव   चर्चाएं

वहीं   दूसरे    पृष्ठों   पर    छपता   रहता   है

जहरीली   शराब   पी   मरे   और  संख्याएं !!

 

अब  जंगल का  राज  बन चुकी  है स्वतंत्रता

यह  जनतन्त्र  नहीं  है  केवल  भीड़  तन्त्र  है

नेता, सत्ता, स्वार्थ   पूर्ण‌  स्वच्छंद  हर  जगह

देश  चेतना   बैठी   हो कर  अब  अतन्त्र  है !!

 

तुमने   चाहा  था    राष्ट्र   के    नेता   शासक

बन कर   रहें   राष्ट्र   की   संपत्ति   के  न्यासी

किन्तु  वही  संपत्ति  आज  वे   घर  ले  जाते

और   राष्ट्र   के  आगे   बन  जाते   सन्यासी !!

 

जितने   जैसे   जो   भी   रहे   विचार  तुम्हारे

लिखे  हुए  हैं  यहाँ   विधानों  की  पुस्तक  में

किन्तु   गलत   ही  बातें   मनवाते   सत्याग्रह

और  सत्य को  लाठी गोली  मिलती  हक में !!

 

दो   अक्टूबर  –  तीस   जनवरी  के  आयोजन

अब   हत्या   के   आयोजन   जैसे   लगते   हैं

खाते गोली सत्यम् – शिवम् – सुन्दरम् प्रतिदिन

उनकी  हर  समाधि  पर  फिर  मेले  लगते  हैं !!

 

जय  प्रकाश  जैसों  के  देख  उदाहरण लगता

तुमने   जाने  का   निश्चय   अच्छा  कर  डाला

और  यहाँ   रहते  तुम   तो  शायद   हम  पाते

राजघाट   के   दरवाजों   पर   लटका   ताला !!

 

जीवन   के   सच   जो   भारत  ने  तुमसे  पाए

बापू  !  आज   नहीं   उनका   कोई   संबल  है

टीस  रहे  मन   तुम्हें  बुलाते   आ  जाओ  फिर

भारत  माता  की आत्मा  फिर हुई  विकल  है !!

 

?

Manohar Chube

कवि : मनोहर चौबे “आकाश”

19 / A पावन भूमि ,
शक्ति नगर , जबलपुर .
482 001

( मध्य प्रदेश )

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