वसन्त – दोहायन | Basant poem
“वसन्त – दोहायन”
( Basant dohayan )
मेटे ऋतु सन्देश ने, सभी कठिन सन्त्रास!
हुई प्रतीक्षापूर्ण और, सफल हुए आयास !!
हैअब पुष्पित औ’फलित,जन्मजन्म की प्रीत!
पास अवनिके आगया, फिर वसन्त मनमीत !!
आया अब गुदगुदाता, लिए विमल अनुराग!
गुन गुन करते भ्रमरसा, खोजक पुष्पपराग !!
धरा वसंती हो गई, अनुभव कर मधुमास!
मुदितअमल मोहक पवन,पावनभाव सुहास !!
शीत अधिक शीतल नहीं, करे अनन्दित धूप!
जगमग सुन्दर पुष्पसा, चमके जग का रूप !!
अल्प शीत के भाव ने , करी तरंगित देह!
निरख रहे भू वक्ष, मुख,आआ करके मेह !!
आया अग जग मोहने, लेकर मधुर सुवास!
सुन्दर प्रकृतिभाव की, देने नवल हुलास !!
तृप्त और संतुष्ट हैं , सरिताओं की धार!
हुआ वृहद रोचकअधिक,जीवन का विस्तार !!
मुद मंगलमय पवन अब , है रंजित सुखधाम!
जैसे कान्हा वेणु से , निकले राधा नाम !!
पाया प्रियतम अवनि ने, झूमा मन उल्लास!
मिटे प्रतीक्षा के सभी, अनुभव के सन्त्रास !!
हुए संतुलित तत्व सब, प्रकृति भाव विभोर!
दौड़े आते बताने, कोकिल वृन्दी शोर !!
बढ़ते बढ़ते बढ़ेंगे , नये प्रीत अनुबंध!
होंगे अधिक प्रगाढ़ फिर, रंगों के सम्बन्ध !!
मृदु प्रियतम स्पर्श अब, है जीवन विश्वास!
धरती ने अनुराग का, पाया नव “आकाश”!!
कवि : मनोहर चौबे “आकाश”
19 / A पावन भूमि ,
शक्ति नगर , जबलपुर .
482 001
( मध्य प्रदेश )