बज़्म को अब न आज़माओ तुम
बज़्म को अब न आज़माओ तुम
बज़्म को अब न आज़माओ तुम
शेरों में कुछ नया सुनाओ तुम
बिन तेरे हम न जी सकेंगे अब
दूर नज़रों से यूँ न जाओ तुम
वो भी बेटी किसी के है घर की
अब न दुल्हन कोई जलाओ तुम
अम्न का दीप है जलाया जब
ये अदावत भी अब मिटाओ तुम
हो न तौहीन अब बुज़ुर्गों की
उनकी ख़िदमत में सर झुकाओ तुम
थम न जाएँ ये धड़कनें दिल की
बिजलियाँ दिल पे मत गिराओ तुम
कर लूँ दीदार मैं भी अब मीना
रुख़ से चिलमन ज़रा हटाओ तुम
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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