बेटी उर्फ नारी | Beti urf Nari

बेटी उर्फ नारी

( Beti urf nari ) 

 

बेटी बनकर वह बाबुल घर आई
राखी बांध भैया की बहना कहलाई
दादा ,दादी , ताऊ और ताई सबकी
मानो थी वो सबकी एक परछाई..

फिर छोड़ पिता का घर बेटी ने
दुल्हन बनकर आई पिया के संग
कितने ही स्वप्न सजा आई गुड़िया
लिए जोश मन मे भरकर उमंग…

कुछ दिन बीते ही , सब बदल गया
तात वहां के थे और यहां के हैं पिया
समझ न पाती वह,किस घर की रानी
मिले जेठ जेठानी , छूटे वो नाना नानी…

अपना है कौन और है पराया क्या
रिश्तों के जंगल मे, उसका अपना क्या
कहीं की धन पराया कहलाती बेटी
कहीं वह केवल है औरत का तन….

नारी क्या सचमुच एक बला सी है
क्या महज शिल्पकार की कला सी है
जब जिसने चाहा जैसा मोड़ दिया
मांगे उत्तर,किसने यह अधिकार दिया..

 

रूबी चेतन शुक्ला
अलीगंज ( लखनऊ )

यह भी पढ़ें :-

धार्मिक बाध्यता | Dharmik Badhyata

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *