बेटियों को मजबूर नहीं मजबूत बनाइए
बेटियों को मजबूर नहीं मजबूत बनाइए
क्या हम वही हैं
जो हमें होना चाहिए ?
जब हमारे अंदर इंसानियथत ही नहीं
तो क्या हमें जीना चाहिए ?
आज के परिवेश में
इस प्रश्न पर सोचिए और विचारिए !
बड़ा अहम सवाल है
केवल दांत मत चियारिए !
बेटियाँ केवल मेरी और आपकी ही नहीं ,
इस सभ्य समाज की बहुमूल्य धरोहर हैं ,
केवल नारे मत लगाइए
इनको बचाइए |
ये हमारी संस्कृति व सभ्यता की ताज हैं ,
मान मर्यादा व माता पिता की लाज हैं ,
ये सदियों से गुलामी के पिंजरे में बंद थीं ,
इन्हें अब कैद मत कीजिये |
ये तितलियाँ हैं —-
इन्हें आजाद होकर उड़ने दीजिए ,
ऊँची -ऊँची उड़ान भरने दीजिए ,
पंख इन्हें मिले हैं
तो इनकी उड़ान में
रूकावट मत बनिए |
ये दुनियाँ के हर दुख सहती हैं ,
पर मुंह से कुछ नहीं कहतीं हैं |
अपनी हदों में रहकर
हर काम को करती हैं |
दो परिवारों को जोड़ने में पूल का काम करतीं हैं
दोनों तरफ का भार खुद उठाती हैं |
आप अपने फर्ज़ को निभाइए ,
इन पर रहम मत खाइए |
ये अबला नहीं हैं ,
दरिन्दों के लिए बला हैं
सभ्य समाज के लिए सुंदर बाला हैं |
अब समय आ गया है ,
जंगली खूंखार भेड़ियों से टकराने का |
उन्हें जड़ से मिटाने का |
इसलिए —
बेटियों को मजबूर नहीं ,
मजबूत बनाइए |