भर भर दुआ देने लगे
भर भर दुआ देने लगे
हम बुज़ुर्गों पर तवज्जो जब ज़रा देने लगे
वो मुहब्बत से हमें भर-भर दुआ देने लगे
घर के आँगन में खड़ी दीवार जब से गिर गयी
नाती पोतों के तबस्सुम फिर मज़ा देने लगे
मिट गये शिकवे गिले जब भाइयों के दर्मियाँ
एक दूजे के मरज़ में वो दवा देने लगे
आ रहींं हैं लौट कर क्या फिर यहाँ पर रौनक़े
जो थे रूठे लोग कल तक वो सदा देने लगे
क्या गजब की चाशनी तहरीर में घोली गयी
ख़त पुराने हैं मगर मतलब नया देने लगे
लग रहा है डर मुझे यह जल न जाये आशियाँ
छोड़ कर चिंगारियाँ दुश्मन हवा देने लगे
बस इसी इक बात से साग़र हूँ मैं हैरतज़दा
क्यों मेरी परवाज़ को वो हौसला देने लगे
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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