Ghazal | भरोसा क्या बहारों का
भरोसा क्या बहारों का
( Bharosa Kya Baharon Ka )
गुलों को खुद खिला लेना भरोसा क्या बहारों का।
खुदी से दोस्ती करना भरोसा क्या है यारों का।।
नहीं रौशन फिजा होती कभी भी आजमा लेना।
है चंदा आसमां में तो नज़ारा क्या सितारों का।।
करो उम्मीद जब भी तुम हमेशा याद रख लेना।
समय पर काम आता एक भरोसा क्या हजारों का।।
वो करते बात न कोई सुकूं दिल को दिलाने की।
न उनकी बात जो खुश है फसाना ग़म के मारों का।।
खुदा का आसरा लेकर सभी तुम काम कर लेना।
बनेगे काम सारे ही तजो चक्कर सहारों का।।
करोगे पार दरिया को जरा हिम्मत दिखाओ तो।
नहीं हरगिज कभी अच्छा यहां तकना किनारों का।।
अजब दुनिया में रहते हैं यहां पर हम सभी यारो।
सभी लङते है आपस में है क्या कहना नजारों का।।
सभी का थामते दामन नहीं दुश्मन कोई जिनका।
नहीं जिनका कोई सानी रहे अरमान ख़ारों का।।
रहो बेखौफ तुम बेशक ‘कुमार’ इतना समझ लेना।
न कोई खौफ दुश्मन का सदा खतरा गद्दारों का।।
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कवि व शायर: Ⓜ मुनीश कुमार “कुमार”
(हिंदी लैक्चरर )
GSS School ढाठरथ
जींद (हरियाणा)
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