बिमल तिवारी की कविताएं | Bimal Tiwari Poetry
फिर मिलेंगे
झंझटें तमाम आ के चली गई
होना था बदनाम हो के चली गई
जीवन में वसंत इतने देख लिए,की
कई सुहानी शाम आ के चली गई,
हर सुबह एक ख्वाब में ही बीत गई
कुछ करने की ख्याल में ही बीत गई
क्या खोया क्या पाया अब तक मैंने
समय इसी सवाल में ही बीत गई,
जीवन आ के खड़ी हुई दो राहों पर
इधर उधर या किधर की निगाहों पर
जीवन बची रही तो लाख भटकन बाद
हम फिर मिलेंगे किसी गली चौराहों पर ।।
झंझटें तमाम आ के चली गई
झंझटें तमाम आ के चली गई
होना था बदनाम हो के चली गई
जीवन में वसंत इतने देख लिए,की
कई सुहानी शाम आ के चली गई,
हर सुबह एक ख्वाब में ही बीत गई
कुछ करने की ख्याल में ही बीत गई
क्या खोया क्या पाया अब तक मैंने
समय इसी सवाल में ही बीत गई,
जीवन आ के खड़ी हुई दो राहों पर
इधर उधर या किधर की निगाहों पर
जीवन बची रही तो लाख भटकन बाद
हम फिर मिलेंगे किसी गली चौराहों पर ।।
योगदिवस
जोड़ सको ग़र पेट को निवालों से
जोड़ सको ग़र खेत को अनाजों से
जोड़ सको ग़र रेत को मैदानों से
अपनें कर्म से या कोई संयोग से
तब समझना जोड़ लिया ख़ुद को तूने
इस जहां से उस जहां तक योग से ,
ग़र पाट दिया सबके दिल के नफरत को
और बाट दिया हर हृदय मुहब्बत को
साथ कर दिया जो गली, गाँव, कस्बे को
मिटा कर मन के भेवभाव हर क्षोभ से
तब समझना जोड़ लिया ख़ुद को तूने
इस जहां से उस जहां तक योग से ,
योग बस युग्म नहीं है तन और मन का
योग बस युग्म नहीं फन और जन का
योग कोई युग्म नहीं धन और रण का
दूर कर लिया जो इन संसारी वियोग से
तब समझना जोड़ लिया ख़ुद को तूने
इस जहां से उस जहां तक योग से ।।

बिमल तिवारी आत्मबोध
देवरिया उत्तर प्रदेश
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