बोतल

बोतल | Kavita Botal

बोतल ( Botal ) ता-ता थैया करती बोतल लाती है बाहर l उसकी ताकधीना-धिन पर नाच रहा संसार l बोतल में है समाया सारे जग का सार l करता है गुलामी बोतल की संसार l बिन बोतल के सूना है संसार बिना बोतल नहीं नहीं है मनुज का उद्धार। बोतल के दम पर आज बच्चा…

बहती रहती जीवन धारा | Bahati Rahti Jeevan Dhara

बहती रहती जीवन धारा | Bahati Rahti Jeevan Dhara

बहती रहती जीवन धारा ( Bahati Rahti Jeevan Dhara ) महामृत्यु के आंचल में भी जीवन की रेखाएं। मानव मन की जिजीविषा ही पुष्पित हो मुस्काए। विविधि वर्जनाओं में चलता रहता सर्जन क्रम है। आस्थाओं का दीप प्रज्वलित हरता तम विभ्रम है। नित्य नवीन अंकुरित आशा उत्साहित कर जाती, कर्मठता पलती अभाव में करती रहती…

आओ जी लें प्रेम से कुछ पल

आओ जी लें प्रेम से कुछ पल

आओ ,जी लें प्रेम से कुछ पल अंतस्थ वृद्धन अंतराल , निर्मित मौन कारा । व्याकुल भाव सरिता, प्रकट सघन अंधियारा । पहल कर मृदु संप्रेषण, हिय भाव दें रूप सकल । आओ, जी लें प्रेम से कुछ पल ।। भीगा अंतर्मन संकेतन, जीवन पथ रिक्ति भाव। अस्ताचल स्वप्न माला, धूप विलोपन छांव । अब…

क्या आचार डालोगे रूप का | Kya Achar Dalogi Roop ka

क्या आचार डालोगे रूप का | Kya Achar Dalogi Roop ka

क्या आचार डालोगे रूप का आज समोसा बोला कवि से,क्यों इतना घबड़ाते हो। मिलाकर चटनी,खट्टी मीठी,अपना स्वाद बढ़ाते हो। मेरी कैसी दुर्गति होती,क्या तुम कभी लिखपते हो। देख तड़पता मुझको तलते,अपना हाथ बढ़ाते हो।। पहले पानी डाल मजे से,घूंसे से पिटवाते हो। हाथों से फिर नोच नोच कर,बेलन से बेलवाते हो। हरा लाल मिर्चों की…

घर बेटी का | Kavita Ghar Beta Ka

घर बेटी का | Kavita Ghar Beta Ka

घर बेटी का ( Ghar Beta Ka ) आज घर में सन्नाटा छा गया। जब बेटी ने प्रश्न एक किया। जिसका उत्तर था नही हमारे पास। की घर कौनसा है बेटियों का।। पैदा होते ही घर वाले कहते है। बेटी जन्मी है जो पराया धन है। बेटा जन्मता तो कुल दीपक होता। पर जन्म हुआ…

मेरे मन का दर्पण

मेरे मन का दर्पण | Kavita Mere Man ka Darpan

मेरे मन का दर्पण ( Mere Man ka Darpan ) मेरे मन के दर्पण मे तस्वीर तुम्हारी है कान्हा, प्रतिपल देखा करती हूं तस्वीर तुम्हारी अय कान्हा, खोली ऑखें तुझको पाया मूॅदी ऑख तुझे ही, कितना भी देखूं तुझको न ऑखों की प्यास बुझेगी, इकदिन सम्मुख दरसन दोगे सोच रही हूं मै कान्हा, प्रतिपल देखा…

बारिश में सीता

बारिश में सीता | Kavita Baarish me Sita

बारिश में सीता ( Baarish me Sita ) हो गई शुरू झड़ी बरसात की। दुखिया कौन है आज,सीता सी? पति चरण छाया से कोसों दूर। हो रही है व्थथा से चूर-चूर। हितैषी नहीं है,सब बेगाना। कैसे, दूर संदेश पहुँचाना ? ऋतु ने भी दुश्मनी मोल ले ली। हो गई शुरू झड़ी बरसात की। महलों की…

बिनकहे | Kavita Binkahe

बिनकहे | Kavita Binkahe

बिनकहे ( Binkahe ) रहते हों इंसान जहाँ वो मकान खंडहर नहीं होते रहते हों जहाँ फकत इंसान वो महल भी खंडहर से कम नहीं होते बुलावा हो फर्ज अदायगी का ही तो वहाँ भीड़ ही जमा होती है आते हैं बनकर मेहमान लोग उनमे दिली चाहत कहाँ होती है शादी का बंधन भी तो…

हाथरस की भीड़ में

हाथरस की भीड़ में

हाथरस की भीड़ में हाथरस की भीड़, में शून्य हुआ जीवन रस अंधविश्वासी बनकर बाबा के दरबार में मैं तो नत मस्तक करने गई थी। अपनों के पास पहुंचने से पहले मैं बाबा धाम पहुंच चुकी थी। सुलझाने कुछ समस्या उलझन में सांसे फस गई थी अंधविश्वासी बनकर मैं तो बाबा के दरबार में गई…

दी गर्दन नाप

दी गर्दन नाप | Di Gardan Naap

दी गर्दन नाप ( Di Gardan Naap ) चार चवन्नी क्या मिली, रहा न कुछ भी भान। मति में आकर घुस गए, लोभ मोह अभिमान।। तन मन धन करता रहा, जिस घर सदा निसार। ना जानें फिर क्यों उठी, उस आँगन दीवार।। नहीं लगाया झाड़ भी, जिसने कोई यार। किस मुँह से फिर हो गया,…