बचपना | बालगीत

बचपना | बालगीत

बचपना  ( Bachpana ) पुआल पर दौड़कर जीत जाते हैं, बारिश में भीगकर नाव चलाते हैं। बर्तनों से खेलकर खाना बनाते हैं-, चुपके से चलके याद, बचपन में चले जाते हैं । मुकुट मोर पंखों का लगाकर, कृष्ण बन जाते हैं, नीले आकाश को छूकर धरती पर इतराते हैं। कपड़ा ओढ़ मेढ़क बनकर, बारिश करवाते…

अपने और पराये | Kavita Apne aur Paraye

अपने और पराये | Kavita Apne aur Paraye

अपने और पराये ( Apne aur Paraye ) जो कल तक दोस्त थे अब वो दुश्मन बन गये हैं। जो खाते थे कसमें यारों सदा साथ निभानें की। जरा सा वक्त क्या बदला की बदल गये ये सब। और छोड़कर साथ मेरा चले गये कही और।। जो अपने स्वर्थ को तुम रखोगे जब साथ अपने।…

Bharat Desh par Kavita

राष्ट्रधर्म | Kavita Rashtradharm

राष्ट्रधर्म ( Rashtradharm ) देश काल सापेक्ष संस्कृति का जिसमें विस्तार है। राष्ट्र धर्म है श्रेष्ठ सभी से, सब धर्मों का सार है। प्राप्त अन्नजल जिस धरती से, बनी प्राणमय काया, जिसकी प्रकृति सम्पदा पाकर, हमने सब भर पाया, पवन प्रवाहित हो श्वांसों में, ऊर्ज्वस्वित है करता, अपने विविधि उपादानों से, जीवन सुखद बनाया, करे…

समझ नहीं आता | Kavita Samajh Nahi Aata

समझ नहीं आता | Kavita Samajh Nahi Aata

समझ नहीं आता ( Samajh Nahi Aata ) कैसी ये उहापोह है समझ नहीं आता क्यों सबकुछ पा जाने का मोह है समझ नहीं आता लक्ष्य निर्धारित किए हुए हैं फिर भी कैसी ये टोह है समझ नहीं आता खुशियों के संग की चाहत है रिश्तों से फिर क्यों विछोह है समझ नहीं आता शिखा…

कर्मठ बनिए | Kavita Karmath Baniye

कर्मठ बनिए | Kavita Karmath Baniye

कर्मठ बनिए ( Karmath Baniye ) निरन्तर लगाव का भाव रखना , हद और सरहद जमीन की होती है ।।1। भारतीय अंधेरे भी हैं मुट्ठी बांधे , हाथापाई की झड़प चीन की होती है ।।2। शब्द के प्रयोग से प्रभाव शून्य होता, सम्मान सदैव मनहर मौन की होती है।।3। हर युद्ध का पथप्रदर्शक धर्म रहा…

Khat par Kavita

खत से इजहार | Kavita Khat se Izhaar

खत से इजहार ( Khat se izhaar ) दिल की पीड़ा को नारी भली भाती जानती है। आँखों को आँखों से पढ़ना भी जानती है। इसलिए तो मोहब्बत नारी से शुरू होकर। नारी पर आकर ही समाप्त होती है।। मोहब्बत होती ही है कुछ इसी तरह की। जो रात की तन्हाई और सुहाने मौसम में।…

दूधवाला

दूधवाला | Kavita Doodhwala

दूधवाला ( Doodhwala ) घर-घर आता सुबह शाम, ड्रम दूध के हाथों में थाम। दरवाजे पर आवाज लगाता, संग में लस्सी भी है लाता। सुबह-सुबह जल्दी है उठता, उठकर दूध इकठ्ठा करता। साफ- सफाई रखता पूरी, तोल न करता कभी अधूरी। मिलावट से है कतराता, दूध हमेशा शुद्ध ही लाता। आंधी, वर्षा, सर्दी, गर्मी, भूल…

व्रीड़ा

व्रीड़ा | Kavita Vrida

व्रीड़ा (  Vrida ) खोया स्वत्व दिवा ने अपना, अंतरतम पीड़ा जागी l घूँघट नैन समाए तब ही, धड़कन में व्रीड़ा जागी ll अधर कपोल अबीर भरे से, सस्मित हास लुटाती सी, सतरंगी सी चूनर ओढ़े, द्वन्द विरोध मिटाती सी, थाम हाथ साजन के कर में सकुचाती अलबेली सी, ठिठक सिहर जब पाँव बढ़ा तो,…

आज का काव्यानंद | डॉ० रामप्रकाश ‘पथिक’

आज का काव्यानंद | डॉ० रामप्रकाश ‘पथिक’

मिली सूचना, रावण दुख के मिली सूचना, रावण दुख केसागर में डूबा-साबाँधे था टकटकी शून्य मेंचुप, विक्षिप्त हुआ-सा रोती मंदोदरी, रुदन थारावण को दहलाताआर्तनाद गूँजता, कलेजाउसका मुँह को आता मेघनाद-पत्नी सुलोचनाहो अधीर बिलखायीसुनकर छाती फटी गगन कीधरणी भी बिचलायी रह-रह रावण चिंतित सहेतुमन में संशय के धूमकेतुआहत हो वन में विकल सिंहज्यों क्रोधातुर प्रतिशोध हेतु…

चल चित्र | Kavita Chal Chitra

चल चित्र | Kavita Chal Chitra

चल चित्र ( Chal Chitra ) चल चित्र का आज कल क्या हाल हो रहा है। देखो अब दर्शको का टोटा सा पड़ रहा है। एक जमाना था चलचित्रों का जो देखते ही बनता था। पर अब हाल बहुत बुरा है देखों चल चित्रों का।। लड़ते मरते थे दर्शक देखने को पहला शो। हालत ये…