चांद पर भारत | Chand par Bharat
चांद पर भारत!
( Chand par Bharat )
आशियाना चांद पे मिलके बनायेंगे,
दूसरे ग्रहों पे भी कदम हम बढ़ाएंगे।
गिर करके उठना दुनिया की रीति है,
हौसले से फासले खुद हम घटाएंगे।
अश्कों से जंगल होता हरा नहीं,
हकीकत की दुनिया वहां अब बसायेंगे।
महकेंगी सांसें पर अभी है तपाना,
नए मंजरों पे नजर ये गड़ाएंगे।
हीलियम, स्कैंडियम, येट्रीयम तो पायेंगे,
रफ्ता_रफ्ता परदा चांद का उठायेंगे।
फूल समझकर चलेंगे उन कांटों पे,
ओस के उन कतरों से छाले घटाएंगे।
अमेरिका, रूस, चीन नजर हैं गड़ाए,
साउथ पोल पे तिरंगा फहराएंगे।
वैज्ञानिक हमारे अपने ही बूते पे,
पत्थर से पानी यकीनन निकालेंगे।
कुदरत ने मौका हमको दिया है,
बुझे हैं चराग जो हमीं ही जलाएंगे।
चमकेगी आभा वहां पे वतन की ,
परिन्दों को दाना वहाँ भी चुगाएँगे।
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),
मुंबई