चन्दन | Chandan kavita
“चन्दन”
( Chandan : Kavita )
–>”चन्दन तुम बन जाओ”……||
1.कहने को लकडी है, ठंडक समेटे है |
भीनी सी खुशबू है, विष-धर लपेटे है |
घिंस के जब पत्थर पर, माथे में लगता है |
ऊंगली महकाती है, चन्दन वो लकडी है |
–>”चन्दन तुम बन जाओ”……||
2.चन्दन की राहों में, उलझन हजारों हैं |
चलना जो चाहता है, तो कांटे हजारों हैं |
कांटों से गुजरो तो, कलियाँ भी मिलती हैं |
चन्दन लगाने पर, उंगलियां भी महकती हैं |
–>”चन्दन तुम बन जाओ”……||
3.माना की दुनियां मे, कुछ लोग मतलबी हैं |
अन्दर से पत्थर दिल, और बाहर मखमली हैं |
चाहें तो उनके भी, हम दिल बदल सकते हैं |
बहर से नारियल अन्दर, मखमल कर सकते हैं |
–>”चन्दन तुम बन जाओ”……||
4.चन्दन की खुसबू से, चन्दन की ठंडक से |
चन्दन की लकडी से, चन्दन की बन्नक से |
चन्दन के टीके सा, माथे पर लग जाओ |
लोगों में अपनी यूँ, खुसबू फैला जाओ |
–>”चन्दन तुम बन जाओ”……||
कवि : सुदीश भारतवासी