जेठ की गर्मी | Chhand jeth ki garmi
जेठ की गर्मी
( Jeth ki garmi )
मनहरण घनाक्षरी
चिलचिलाती धूप में,
अंगारे बरस रहे।
जेठ की दुपहरी में,
बाहर ना जाइये।
गर्मी से बेहाल सब,
सूरज उगले आग।
तप रही धरा सारी,
खुद को बचाइये।
त्राहि-त्राहि मच रही,
प्रचंड गर्मी की मार।
नींबू पानी शरबत,
सबको पिलाइये।
ठंडी ठंडी छांव मिले,
चैन आ जाए मन को।
गर्मी से राहत मिले,
बचिये बचाइये।
मत निकलो धूप में,
भीषण गर्मी जेठ की।
प्यासे को पानी जरूर,
शरबत पिलाइये।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )