मां | Maa ke Upar Poem
मां
( Maa )
मोती लुटाती प्यार के, ठंडी आंचल की छांव।
सुख तेरे चरणों में, उमड़े आठों पहर।
प्रेम की मूरत माता, तुम हो भाग्यविधाता।
प्रथम गुरु जननी, तुम ज्ञान की लहर।
खुशियों का खजाना हो, हौसला उड़ान मेरी।
सर पर हाथ तेरा, बरसे तेरी महर।
सारे तीर्थों का सार हो, सृष्टि का उपहार हो।
स्वर्ग तेरे चरणों में, मां हो खुशी का शहर।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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