Hindi Kavita | Hindi Poetry -दबी दबी सी आह है
दबी दबी सी आह है
( Dabi Dabi Si Aah Hai )
कही मगर सुनी नही, सुनी थी पर दिखी नही।
दबी दबी सी आह थी, जगी थी जो बुझी नही।
बताया था उसे मगर, वो सुन के अनसुनी रही,
वो चाहतों का दौर था, जो प्यास थी बुझी नही।
मचलते मन में शोर था,खामोश लब ये मौन था।
बताए कैसे दास्ताँ, कि उसके मन कोई और था।
मै जान कर भी चुप रही, वो बेवफा का दौर था।
हुंकार हूंक लिख रहा, जो दिल मे मेरे आह था।
जो ना कहाँ था लिख दिया, वो हूबहू सी दास्ताँ।
लहू से सुर्ख रंग में, लिखा था कल भी आज सा।
कही मगर सुनी नही, सुनी थी पर दिखी नही।
दबी दबी सी आह थी, जगी थी जो बुझी नही।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )