Hindi Laghukatha | Kahaniya -दहेज़ एक मज़ाक : लघुकथा
दहेज़ एक मज़ाक : लघुकथा
( Dahej Ek Mazak : Laghukatha )
लाला नारायण दास की शहर में सुनार की बहुत बड़ी दुकान है । आज उनकी दुकान पर उनके एक पुराने मित्र रत्नसेठ आए । उनका कारोबार भी अच्छा चल रहा है।
औपचारिक अभिवादन के बाद रतन सेठ उनसे अपनी बेटी के लिए, उनके लड़के के रिश्ते की बात करने लग गए । दोनों ने अच्छी तरह से बात की । मानो रिश्ता पक्का ही हो गया।
अंत में रतन सेठ बोल पड़े,” लाला जी ! आप तो जानते ही हैं कि हम दहेज़ के सख़्त खिलाफ़ हैं इसलिए हमारी लड़की दो जोड़े कपड़ों में ही आपके घर आएगी । और बारात में भी कम से 10 से ज्यादा आदमी ही लेकर आएँ ।”
दहेज ना मिलने की बात सुनते ही लाला नारायण दास जी हैरान रह गए , पर उनसे एकदम से रिश्ते को मना करते ना बना ।
इसलिए उन्होंने कहा, “मैं आपकी सोच का बहुत सम्मान करता हूँ । वैसे दहेज़ के मामले में तो मेरा भी कुछ ऐसा ही विचार है, इसीलिए मैं भी अपने बेटे को अपनी ज़ायदाद से बेदख़ल कर रहा हूँ ।”
उनकी बातें सुन रत्न सेठ दंग रह गए और बोल पड़े,”यह जो दुकान है ?…”
“यह तो मैं अपने छोटे भाई को देकर जाऊँगा ।” लाला नारायण दास ने उत्तर दिया।
रतन सेठ ने पूछा ।”उसे तो हम मियाँ- बीवी हरिद्वार जाने से पहले बेच देंगे ” लाला नारायण ने उत्तर दिया ।”अजी फिर भी ! आपने अपने लड़के को देने के लिए कुछ तो बचाकर रखा होगा।” रतन सेठ ने उत्सुकता से पूछा ।
“जी नहीं ! हमने तो अपने लड़के को पढ़ा-लिखाकर इस क़ाबिल बना दिया है कि वह ख़ुद कमाकर अपने और अपने परिवार का गुज़ारा अच्छे से चला सके।
लाला नारायण दास की बातें सुनते ही रतन सेठ हक्के-बक्के रह गए । और थोड़ी ऊँची आवाज़ में बोल पड़े,” मुझे माफ़ कीजिएगा लाला जी ! मैं किसी कंगाल लड़के से अपनी बेटी की शादी नहीं करूँगा ।”
“पर रतन सेठ आप तो कह रहे थे कि आप तो दहेज़ के खिलाफ़ हैं ? “-लाला नारायणदास ने बड़ी मासूमीयत से पूछा ।
“मैं दहेज़ देने के खिलाफ़ हूँ ।…पर अपनी बेटी के लिए पढ़ा-लिखा,बड़े घर का लड़का देखना तो सबका हक़ है । ” रतन सेठ ने कहा ।
“इसी तरह से लड़के को शादी में बहुत सारा दहेज़ मिलना उसका हक़ हैं ।”, लाला नारायणदास ने उन्हें आईना दिखाते हुए कहा ।
नारायण दास के मुँह से निकल पड़ा,”हे प्रभु !कैसा ज़माना आ गया है-लोग अपनी बेटी के लिए पढ़ा-लिखा, अमीर और नौकरीपेशा लड़का क्यों देखते है जब उन्हें दहेज़ नहीं देना है ।…”
बात बिगड़ती देख रत्न सेठ बोल पड़े,”अरे लाला जी ! लगता है आप तो नाराज़ हो गए ? इतनी पुरानी दोस्ती में मज़ाक भी नहीं कर सकते !…आख़िर समाज में हमारी भी कुछ इज्ज़त है । बेटी को ऐसे ही ख़ाली हाथ थोड़ी ना भेजेंगे ।”
इतना सुनते ही लाला नारायण दास ने मुस्कुराते हुए कहा, “सेठ जी ! मुआफ़ी चाहूँगा मैं भी आपकी तरह मज़ाक ही कर रहा था। वरना एक-एक पाई जोड़कर बनाई इतनी धन-संपत्ति भी भला कोई दान देता है !… ”
अब दोनों की बात पुराने विषय पर लौट आई और दोनों ने एक-दूसरे को शादी की तारीख़ तय करने का आश्वासन दिया ।