दहलीज | Dahleez kavita
दहलीज
( Dahleez )
दहलीज वो सीमा रेखा मर्यादाएं जिंदा रहती है
आन बान और शान की सदा कहानी कहती है
घर की दहलीज से बेटी जब ससुराल को जाती है
आंगन की मीठी यादें रह रहकर याद सताती है
दहलीज समेटे रखती है आदर्शों को संस्कारों को
रिश्तो की नाजुक डोर को सद्भावों से परिवारों को
यौवन की दहलीज पर बहती बदलावों की बयार
महके मन का कोना कोना सुंदर सा लगता संसार
मंदिर की दहलीज पर सब शीश झुकाकर आते हैं
श्रद्धा आस्था भाव भर प्रभु का ध्यान लगाते हैं
हो विमुख कभी प्यारे दहलीज लांघना मत घर की
सारी दुनिया दिखावा है सच्ची दहलीज है हर की
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )