Tum Paras ho
Tum Paras ho

तुम जादुई इक पारस हो

( Tum jadui eik paras ho ) 

 

मैं मामूली इक कंकड़ हूं तुम जादुई इक पारस हो।
मैं खट्टा मीठा स्वाद सही, तुम काव्य का नवरस हो।

मैं अनाड़ी हूं प्यारे, तुम काव्य के बड़े खिलाड़ी हो।
मैं जोधपुरी साफा ही सही, तुम बनारसी साड़ी हो।

मैं शब्दाक्षर का मोती, तुम शब्दों की गूंथी माला हो।
मैं दिनकर का अनुयायी हूं, तुम हरिवंश निराला हो।

मैं लाइव लाइव चलता हूं, तुम मंचों पे छा जाते हो।
दिल तक दस्तक देता हूं, तुम दिल को बहलाते हो।

मैं ओज भरी अंगार बनूं, तुम हास्य रस बरसाते हो।
मैं कलमकार अदना सा, तुम देश विदेश जाते हो।

मैं गीतों की कड़ी ही सही, तुम राग में गीत सुनाते हो।
माला माइक लिए खड़ा, तुम गायब क्यों हो जाते हो।

मैं आन बान में जीता, तुम शान से खूब कमाते हो।
मैं भी वाणी का साधक हूं, मुझसे क्यों कतराते हो।

 

कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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