दीप जले या दिल | Deep Jale ya Dil
दीप जले या दिल
( Deep jale ya dil )
जल रहे है दिल
ये कैसी दिवाली है
कही गरीबी है ,
कही बदहाली हैं
फट रहें हैं बम
लोगों की आंख हैं नम
इंसानित मरने लगी हैं
सभी के मुंह पर गाली हैं
जो कहते थे काफिर मारा जाएगा
उसका मुल्क चेन अमन न पाएगा
आज उनकी की झोली खाली हैं
हर तरफ मौत हैं हर तरफ कंगाली हैं
अरे हम तो सलाम किया करते थे
खरीदते थे चुनरी उन्ही हाथों से
सजते थे दरगाह पर भी फूल कभी ,
हर तरफ होती थी बिक्री बहुत
मिलकर करते थे सब अपना काम
नही होती थी हाय हाय नही होती थी
कोई बिटिया कभी कही बदनाम ,
रहती थी सुरक्षित हर गली मोहल्ले
रात नही होती थी कही काली
अरे वही होती थी दीवाली दिल वाली ।।
आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर – मध्य प्रदेश
dubeyashi467@gmail.com
( मेरे विचारों की अभिव्यक्ति सभी मुसलमान भाइयों को समर्पित , जिनसे हम दिवाली पर भी पटाखे और कई सामान खरीद करते है और आज भी खरीदते है दिवाली हमारी दिए उनके दिल हमारे और फूल उनके हुआ करते थे कभी।
आज कई मुल्क आपसे लड़ रहे हैं सोचो लड़ाई किस बात की है वहां तो हम नहीं है सनातन धर्म नहीं है फिर भी लड़ाई हो रही है इस सभी घटनाक्रम से एक बात तो समझ में आती है जहर कैसा भी हो एक ही काम करता है करने का। )